(अंक ३५४ में आपने पढ़ा कि जन्ममरणरूपी रोग देनेवाले मानस रोगों के वैद्य सद्गुरु हैं और शिवजी जैसे समर्थ वैद्य होते हुए भी रावण उनसे क्यों लाभ नहीं ले पाया। अब आगे...)
क्या है पथ्य, दवा और अनुपान?
पथ्य यह है कि जिन कारणों से रोग हुआ है, पहले हम उन्हें छोड़ने का निर्णय कर लें और जिन कारणों से बुराइयाँ आती हैं, हम उनसे बचें। फिर अंत में दवा बतायी गयी : रघुपति भगति सजीवन मूरी। भगवान की भक्ति ही अमृतमयी औषधि है।
आयुर्वेद में वैद्यों की एक परम्परा है कि दवा के साथ अनुपान ( दवा के साथ ली जानेवाली चीज) भी देते हैं। काकभुशुंडिजी कहते हैं कि अनूपान श्रद्धा मति पूरी।
'श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान है।'
(श्री रामचरित. उ. कां. : १२१.४)
मन के रोग कब दूर होंगे?
Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin August 2022 sayısından alınmıştır.
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।