इतने में सेठ आया, बोला: "ऐसा गंदा! रास्ता भी गंदा करता हुआ आ रहा होगा, ऐसा व्यक्ति मेरे महल के आगे? महल की शोभा बिगाड़ता है।" ऐसा करके डाँट दिया।
सच्चे ब्रह्मवेत्ता, सच्चे ज्ञानी का सान्निध्य जीव को निहाल कर देता है, कल्याण कर देता है। मैंने सुनी है एक कहानी। एक धनाढ्य सेठ के बड़े महल के सामने एक मैदान था, जिसमें एक गरीब लुहार का टूटा-फूटा झोंपड़ा था। लुहार लोहा कूटता, कुल्हाड़ी आदि की धार तेज करता और इससे रुपये - दो रुपये दिनभर में कमा लेता था। उससे आगंतुक भक्त का, संत का आतिथ्य, स्वागत-सत्कार करता था और बड़ा आनंद से जीता था।
सेठ के पास शरीर की आवश्यकता पूरी करने के सामानों का ढेर लगा था। लोग उसको सुखी समझते थे परंतु वह बड़ा खिन्न-मानस था।
एक दिन शुकदेवजी, जड़भरत जैसे कोई ब्रह्मवेत्ता, जिनको सारा विश्व अपना स्वरूप अनुभव होता हो ऐसे महापुरुष, मैले कुचैले कपड़े पहने रात्रि के समय पसार हुए। देखा कि महल के पास बड़ा चबूतरा है तो संतरी को कहा: "भाई! मेरे को रोटी नहीं चाहिए पर यह चबूतरा जरा साफ-सुथरा है, मेरे को यहाँ आराम करने देगा?"
संतरी: "अरे, तेरे फटे कपड़ों से बदबू आ रही है। ऐसा है, वैसा है...।"
इतने में सेठ आया, बोला: "ऐसा गंदा! रास्ता भी गंदा करता हुआ आ रहा होगा, ऐसा व्यक्ति मेरे महल के आगे? महल की शोभा बिगाड़ता है।" ऐसा करके डाँट दिया।
साधु गये लुहार के पास। उसके झोंपड़े में तो चौखट ही नहीं थी तो दरवाजा कहाँ लगे! लुहार बोला: "महाराज! महाराज! आइये, आइये!"
साधु: "भैया! मुझे भोजन-पानी की आवश्यकता नहीं है। मैं रात को विश्राम करना चाहता हूँ, सुबह चला जाऊँगा।"
लुहार: ‘"महाराज! बड़ी कृपा हुई, यह झोंपड़ा आपका है। आपने मेरा घर पावन किया। कृपानाथ! आइये, बैठिये, आराम करिये।"
Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin August 2023 sayısından alınmıştır.
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ज्ञान के दीप, भक्ति के पुंज व सेवा की ज्योति से सजी दिवाली
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि | हमारी संस्कृति के पावन पर्व दीपावली पर दीप जलाने की परम्परा के पीछे अज्ञान-अंधकार को मिटाकर आत्मप्रकाश जगाने का सूक्ष्म संकेत है। १ से ७ नवम्बर तक अहमदाबाद आश्रम में हुए 'दीपावली अनुष्ठान एवं ध्यान योग शिविर' में उपस्थित हजारों शिविरार्थियों ने हमारे महापुरुषों के अनुसार इस पर्व का लाभ उठाया एवं अपने हृदय में ज्ञान व भक्ति के दीप प्रज्वलित कर आध्यात्मिक दिवाली मनायी।
पुत्रप्राप्ति आदि मनोरथ पूर्ण करनेवाला एवं समस्त पापनाशक व्रत
१० जनवरी को पुत्रदा एकादशी है। इसके माहात्म्य के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :
पंचकोष-साक्षी शंका-समाधान
(पिछले अंक में आपने पंचकोष-साक्षी विवेक के अंतर्गत जाना कि पंचकोषों का साक्षी आत्मा उनसे पृथक् है । उसी क्रम में अब आगे...)
कुत्ते, बिल्ली पालने का शौक देता है गम्भीर बीमारियों का शॉक!
कुत्ते, बिल्ली पालने के शौकीन सावधान हो जायें !...
हिम्मत करें और ठान लें तो क्या नहीं हो सकता!
मनुष्य में बहुत सारी शक्तियाँ छुपी हुई हैं। हिम्मत करे तो लाख-दो लाख रुपये की नौकरी मिलना तो क्या, दुकान का, कारखाने का स्वामी बनना तो क्या, त्रिलोकी के स्वामी को भी प्रकट कर सकता है, ध्रुव को देखो, प्रह्लाद को, मीरा को देखो।
पुण्यात्मा कर्मयोगियों के नाम पूज्य बापूजी का संदेश
'अखिल भारतीय वार्षिक ऋषि प्रसाद-ऋषि दर्शन सम्मेलन २०२५' पर विशेष
मकर संक्रांति : स्नान, दान, स्वास्थ्य, समरसता, सुविकास का पर्व
१४ जनवरी मकर संक्रांति पर विशेष
समाजसेवा व परदुःखकातरता की जीवंत मूर्ति
२५ दिसम्बर को मदनमोहन मालवीयजी की जयंती है। मालवीयजी कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श थे। वे अपना प्रत्येक कार्य ईश्वर-उपासना समझकर बड़ी ही तत्परता, लगन व निष्ठा से करते थे। मानवीय संवेदना उनमें कूट-कूटकर भरी थी।
संतों की रक्षा कीजिये, आपका राज्य निष्कंटक हो जायेगा
आप कहते हैं... क्या पुरातत्त्व विभाग के खंडहर और जीर्ण-शीर्ण इमारतें ही राष्ट्र की धरोहर हैं? ... राष्ट्रसेवा करने का सनातनियों ने उन्हें यही फल दिया !
ब्रह्मवेत्ता संत तीर्थों में क्यों जाते हैं?
एक बड़े नगर में स्वामी शरणानंदजी का सत्संग चल रहा था। जब वे प्रवचन पूरा कर चुके तो मंच पर उपस्थित संत पथिकजी ने पूछा कि ‘“महाराज ! आप जो कुछ कहते हैं वही सत्य है क्या?\"