विवेक कीजिये
Rishi Prasad Hindi|October 2023
भगवान श्रीरामचन्द्रजी के वनवास के बाद उनका राज्याभिषेक हुआ कुछ दिन बीते न बीते कौसल्या सुमित्रा और कैकेयी–तीनों माताओं ने विचार-विमर्श करके रामजी को कहा : “पुत्र! रामराज्य तो हो गया, हमने राजमाताएँ होकर जी भी लिया है। अब वत्स! हमें अपने आत्मकल्याण के लिए वन भेजने की व्यवस्था करो।"
पूज्य बापूजी
विवेक कीजिये

तब श्रीराम कौसल्याजी से कहते हैं : "माँ ! तुम यह क्या कह रही हो ! १४ वर्ष तो अभी मैं वन जा के आया फिर तुम वन क्यों जाओगी? राजकाज के भार से मैं थकूँगा तो तुम्हारी गोद में सिर रखते हुए विचार-विमर्श, सलाह-मशविरा करूँगा। अभी तो तुम्हारी विशेषविशेष जरूरत है माँ !"

कौन कह रहा है? भगवान विष्णुजी के अवतार - भगवान श्रीराम कह रहे हैं! किंतु भारत की महान नारी क्या कह रही है सुनो सावधानी से। माँ कौसल्या कहती हैं : "तुम मेरे पुत्र राम हो, राजा राम हो और भगवान राम भी हो फिर तुम मोह की बात क्यों कर रहे हो? जीव बालक होता है तब समझता है मुझे खिलौनों की जरूरत है। बड़ा होता है तब समझता है कुटुम्बियों को मेरी आवश्यकता है। जब बूढ़ा होता है तब समझता है कि बाल-बच्चे, पोते-पोत, नाते-रिश्तेदारों को मेरी आवश्यकता है। लेकिन हे राम ! जीव की अपनी आवश्यकता है कि वह अपना आत्मोद्धार कर ले, मौत धन-सम्पदा छीन के ले जाय उससे पहले अपने आत्मदेव को पा ले।"

भगवान श्रीराम भरी आँखें, भरे कंठ माँ कौसल्याजी को कहते हैं कि "माँ ! तुम भक्ति में, धर्म में तो अग्रणी हो परंतु परमार्थ का महत्त्व भी तुम जानती हो; मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है यह तुम जानती हो और उसी रास्ते की यात्रा करना चाहती हो तो मैं आपको मोह में क्यों डालूँ? मैं तुम्हारी सेवा में रथ तैयार करवाता हूँ।"

Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin October 2023 sayısından alınmıştır.

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