जितनी आंतरिक निश्चितता होती है उतना ही बुद्धि का चमत्कार प्रकट होता है। अतः जितना हो सके अपने जीवन में चिंता को महत्त्व नहीं देना। यथायोग्य पुरुषार्थ करना किंतु 'मेरे भविष्य का, पत्नी-परिवार का, बाल-बच्चों का क्या होगा... इसका क्या होगा, उसका क्या होगा...' इस चक्कर में मत पड़ना।
एक तगड़ा पहलवान था। बचपन से वह किसी गाँव से चला आया और अखाड़े में जम गया। दूध पीता, दंड-बैठक लगाता और हनुमानजी की कथा करता। बड़ा निष्फिक्र, निश्चित! कमाने की, बाल-बच्चों की, नौकरी की... कोई चिंता नहीं थी उसे। उस पहलवान से राजा बड़ा परेशान हो गया था क्योंकि राजा जब हाथी पर सवार हो के निकलता था तो वह पहलवान हँसी-हँसी में हाथी की पूँछ पकड़ लेता था। महावत कितने ही प्रयास करे परंतु हाथी हिल नहीं पाता था राजा की भी हँसी उड़ती। भीड़ इकट्ठी हो जाती और पहलवान का जयघोष होता। दूर-दूर के पहलवान उसकी यश-कीर्ति से प्रभावित हो गये। सारा गाँव उसे प्यार करता था। सारा गाँव पहलवान के पक्ष में था तो राजा उसको सजा कैसे करे, डाँटे कैसे ?
Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin October 2023 sayısından alınmıştır.
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।