सच्चे संत स्वयं कष्ट सहकर भी सत्य की रक्षा करते हैं
Rishi Prasad Hindi|September 2024
आज हम देखते हैं कि धर्म-विरोधी तत्त्वों द्वारा साजिश के तहत हमारे निर्दोष हिन्दू साधु-संतों की छवि धूमिल करके उनको फँसाया जा रहा है, उन्हें कारागार में रखा जा रहा है। ऐसी ही एक घटना का उल्लेख स्वामी अखंडानंदजी के सत्संग में आता है, जिसमें एक संत की रिहाई के लिए एक अन्य संत के कष्ट सहन की पावन गाथा प्रेरणा-दीप बनकर उभर आती है :
सच्चे संत स्वयं कष्ट सहकर भी सत्य की रक्षा करते हैं

"मध्य प्रदेश में एक बड़ी रियासत थी। वहाँ एक महात्मा जेल में डाल दिये गये थे। वे स्वयं तो गाँजा नहीं पीते थे परंतु उनके फूल के बगीचे में गाँजे के पौधे लगे हुए थे, यही उनका अपराध था। जब हमारे महात्माजी (मधईपुर के ब्रह्मवेत्ता महात्मा) को मालूम पड़ा तो वे अकेले ही सैकड़ों मील की यात्रा कर वहाँ पहुँच गये। राजा के उद्यान में जाकर बैठ गये। शरीर पर लँगोटी के सिवाय और कुछ नहीं, धूल से लथपथ। राजा आया टहलने। उसके साथियों ने आकर बाबाजी से कहा : "तुम यहाँ से हट जाओ, राजा साहब आ रहे हैं।"

वे वहाँ से हटने को तैयार नहीं हुए। राजा टहलते हुए पास आ गया। उसने बाबाजी से पूछा : "तुम कौन हो?"

बोले : ‘“मैं तुम्हें क्या दिखता हूँ?"

राजा ने कहा : "मनुष्य।"

बाबाजी : ‘'तुम चमार हो।"

राजा के साथियों को बहुत बुरा लगा। वे उन्हें वहाँ से निकालने लगे। कुछ आपस में खींचातानी हुई। बाबाजी जानबूझकर गाली देने लगे। पहरेदार पकड़कर थाने ले गये। डिप्टी कलेक्टर के सामने पेश किये गये।

डिप्टी कलेक्टर ने पूछा: "महात्माजी ! आपने राजा को चमार क्यों कहा?"

Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin September 2024 sayısından alınmıştır.

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