यदि लोगों के अंदर भय और घृणा का जहर भर दिया जाए तो उन्हें बड़ी आसानी से संगठित किया जा सकता है. इस का नमूना हम 30 सालों से देख रहे हैं. घृणा फैलाने जैसे कार्यों के लिए धर्म ही सब से अधिक सुलभ एवं सस्ता जहर है जिस का उपयोग सदियों से शासक वर्ग एवं धार्मिक गुरु करते चले आ रहे हैं.
वोटों की राजनीति के लिए धर्मरूपी जहर का उपयोग लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां किसी न किसी रूप में कर रही हैं. भारततीय जनता पार्टी की देखादेखी कांग्रेस, समाजवादी, तृणमूल कांग्रेस आदि भयभीत लोगों के प्रति सहानुभूति दिखा कर उन के वोट अपनी पार्टी के लिए पक्के कर लेने के प्रयास में जुटी हैं.
अब मुसलमानों को देशद्रोही सिद्ध कर के हिंदुओं के वोट अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं. लोगों के विकास और उन की समस्याओं को निबटाने की किसी को भी चिंता नहीं है. सभी पार्टियां 'फूट डालो एवं राज करो' के सिद्धांत का पूरापूरा लाभ उठाने में जुटी हुई हैं.
लोकसभा एवं राज्यसभा में चलने वाली बहसें आम जनता को ऐसे ही संकेत दे रही हैं कि धर्म की आड़ में सत्ता को कैसे बनाए रखा जाए या सत्ता को कैसे हथिया लिया जाए. अब तो कोई भी पार्टी यह नहीं चाहती कि हिंदुओं और मुसलमानों में भाईचारा पैदा हो.
धर्म के नाम पर बंटे रहें
नेताओं एवं धर्मगुरुओं की रोजीरोटी इसी बात पर निर्भर करती है कि लोग धर्म के नाम पर आपस में बंटे रहें. असल में यह चिरकाल से ऐसा ही चला आ रहा है. बांटो और राज करो. धर्म के नाम पर और जाति के नाम पर लोगों को बड़ी सरलता से बांटा जा सकता है. पूरी कौम को संगठित रखने भी इस धर्मरूपी जहर का ही उपयोग किया जाता है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान इस धर्मविष के सहारे ही अपना अस्तित्व बनाए रखे हुए हैं. पश्चिमी एशिया के सभी तानाशाह ऐसे हथकंडों का उपयोग कर के ही अपनी सत्ता को बनाए रखने में सफल हैं.
धर्म की आड़ में लाखों बेकसूर लोगों को जेल में ठूंसना और निहत्थों पर बम वर्षा करने को भी पुण्य का कार्य ठहरा दिया जाता है. सामाजिक बुराइयों को भी उचित मान कर उन्हें सम्मान दिया जाने लगता है.
Bu hikaye Grihshobha - Hindi dergisinin November First 2022 sayısından alınmıştır.
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