साक्षी उस दिन स्कूल से रोती हुई घर लौटी. मां ने वजह पूछी तो 8 साल की साक्षी रोते हुए बोली, "मां मैं क्या भालू की बेटी हूं ? तुम मुझे चिड़ियाघर से लाई थीं ?"
"नहीं मेरी प्यारी गुड़िया... तुम मेरी बेटी हो... किस ने कहा कि तुम भालू की बेटी हो ?" मां ने बच्ची के आंसू पोछते हुए पूछा.
"सब बोलते हैं. आज तो हिंदी की टीचर ने भी बोला कि मैं भालू जैसी दिखती हूं," साक्षी सुबकते हुए बोली.
"क्यों ? ऐसा क्यों बोली वे ?"
"मेरे हाथपैर पर इतने बाल जो हैं, सब को मैं भालू लगती हूं," साक्षी मां के सामने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए बोली.
मां साक्षी की बात सुन कर परेशान हो गई. दरअसल, साक्षी के पूरे शरीर और चेहरे पर घने रोएं हैं. इस के कारण उस का रंग भी दबा हुआ है. अब इतनी कम उम्र में उसे पार्लर ले जा कर वैक्सिग भी नहीं करवा सकते हैं. साक्षी पढ़ने में अच्छी है. डांस और ऐक्टिंग भी बढ़िया करती है, मगर स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उसे मौका नहीं मिलता है. अगर टीचर्स डांस बगैरा में ले भी लें तो अच्छा डांस करने के बाद भी उस को पीछे की लाइन में रखा जाता है. वजह है उस का रोयों से भरा चेहरा और हाथपैर जिन्हें मेकअप में भी छिपाया नहीं जा सकता.
शरीर मजबूत और साफ होता है
दरअसल, साक्षी के पैदा होने के बाद उस के शरीर की जो मालिश होनी चाहिए थी वह कभी हुई नहीं. अकसर नवजातों के शरीर पर जन्म से ही कुछ रोएं होते हैं जो लगातार मालिश से साल 6 महीने में साफ हो जाते हैं. अकसर देखा होगा कि गांवदेहात की महिलाएं अपने नवजातों को अपने पैरों पर लिटा कर सरसों के तेल, हलदी और बेसन के उबटन से उन की मालिश करती हैं.
शहरी मांएं कई तरह के बेबी औयल से अपने उन की मालिश करती हैं जिस से बच्चों का शरीर मजबूत और साफ होता है. मालिश से उन के शरीर में रक्तसंचार भी बढ़िया होता है और ऊर्जा प्राप्त होती है. मगर साक्षी के जन्म के बाद उस की मां को पैरालिसिस का अटैक पड़ा और वे करीब 2 साल बिस्तर पर रहीं. उन का आधा शरीर लकवाग्रस्त हो गया. लंबे इलाज और थेरैपी के बाद अब वे चलनेफिरने के काबिल हुई हैं.
Bu hikaye Grihshobha - Hindi dergisinin February First 2023 sayısından alınmıştır.
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