बीते दिनों एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित पहले पन्ने की रिपोर्ट ने मेरी बात की ही पुष्टि की गई कि 'कृषि को इतने वर्षों में जान-बूझकर गरीब रखा गया है।' जब तक अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के हाथों में कृषि महज महंगाई नियंत्रण के एक औजार के रूप में रहेगा तब तक किसानों को मुश्किलों की उस गहरी दलदल से केवल कोई चमत्कार ही बाहर निकाल सकता है। अपनी इस मौजूदा स्थिति के लिए किस्मत को ही दोष देने वाले किसान शायद ही कभी समझ सकें कि कैसे हकीकत में वे उस दोषपूर्ण आर्थिक प्रारूप के शिकार हैं जो उनके समाज में निचले पायदान पर जैसे-तैसे गुजर-बसर को यकीनी बनाता है।
खरीफ सीजन की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी के प्रस्ताव पर नीति आयोग, वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग और वाणिज्य मंत्रालय ने अन्य मुद्दों के साथ ही बढ़ती मुद्रास्फीति को चिंता का विषय बताते हुए शंकाएं जताई थीं। बीती 29 अगस्त को राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जहां वाणिज्य मंत्रालय ने सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के लिए विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के तहत दायित्वों की बात कहकर आपत्ति जताई, वहीं खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय ने मूल्य वृद्धि के परिणामस्वरूप अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ने की बात सामने रखी। संक्षेप में, ऐसा लगता है कि प्रत्येक संबंधित मंत्रालय को किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में अनुमानित बढ़ोतरी से समस्या थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने आखिरकार खरीफ सीजन के एमएसपी को 6 से 10 प्रतिशत के बीच कीमतों में वृद्धि को मंजूरी दे दी। यह देखते हुए कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा गणना की गई उत्पादन लागत में भी उसी अनुपात में वृद्धि हुई है, एमएसपी की घोषणा मुश्किल से उस बढ़ी हुई लागत को पूरा करती है जो किसानों ने फसल उगाने में लगाई।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।