अरब के एक छोटे से गांव में एक बूढ़ा आदमी रहता था. वह बहुत ही धर्मपरायण यानी भक्ति में डूबा रहने वाला व्यक्ति था. उस के पास एक घोड़ा जो बहुत ही सुंदर, तेज गति वाला और तंदुरुस्त था. वह उसे बहुत ही ज्यादा पसंद करता था, उस का था, हर तरह से खयाल रखता था. वह घोड़ा उसे अपनी जिंदगी से भी प्यारा था. वह उसे स्वस्थ भोजन खिलाता और खुद के लिए भी भोजन अपनी झोंपड़ी में ले जाता तथा उसे भी उस घोड़े को खिलाता था. वह अपने घोड़े पर बैठ कर गांव में चारों ओर घूमा करता था.
घोड़े की चर्चा आसपास के गांव, कसबों, शहरों और नगरों में फैल गई. कुछ लोग तो किसी भी कीमत पर घोड़े को खरीदना चाह रहे थे, लेकिन वह बूढ़ा आदमी किसी भी कीमत पर अपने घोड़े को नहीं बेचना चाहता था.
एक दिन अरब के एक बड़े शहर से एक अमीर व्यापारी ने घोड़े के गुणों को सु सुन कर उसे खरीदने उस के गांव आया. उस ने मुंहमांगी कीमत देने का औफर दिया, लेकिन बूढ़े आदमी ने घोड़े को बेचने से साफ मना कर दिया.
व्यापारी बहुत अनुभवी आदमी था. उस ने दुनिया देखी थी. उसे यह विश्वास हो गया था कि वह घोड़े को सिर्फ रुपयों से नहीं खरीद सकेगा.
वह निराश हो गया, लेकिन जिस समय उसे विदा किया गया उस ने आत्मविश्वास से कहा, "जो कुछ भी मैं चाहता हूं, किसी भी तरह से उसे हासिल कर ही लेता हूं."
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