सुबह के 8 बजे थे. रोजाना की तरह शहर के ' माध्यमिक विद्यालय विद्या निकेतन की बस अपने स्टौप पर खड़ी थी.
विद्यार्थी बस में चढ़ने के लिए लाइन बना कर खड़े थे. बस के दरवाज़े के पास एक शिक्षक भी खड़े थे जो बच्चों को बारीबारी से बस में चढ़ा रहे थे. साथ ही उन को यह भी बता रहे थे कि सब को अपने क्रमानुसार अगली सीट पर बैठना है.
अनुभव और दीपांशु भी इसी लाइन में खड़े थे और दोनों ही कक्षा 6 के विद्यार्थी थे. जब अनुभव की बारी आई तो टीचर ने उसे बस पर चढ़ने के लिए कहा.
दीपांशु ने देखा कि अनुभव को खिड़की वाली सीट मिलेगी और उसे उस के बगल वाली, क्योंकि वह अनुभव के पीछे खड़ा था.
दीपांशु खिड़की वाली सीट पर बैठना चाहता था, क्योंकि उसे खिड़की के पास बैठना बहुत पसंद था.
‘आज तो मुझे खिड़की वाली सीट नहीं मिलेगी,' यह सोच कर वह उदास हो गया. उस के दिमाग में एक शरारती आइडिया आया.
इस से पहले अनुभव बस में बैठने के लिए आगे बढ़ता, दीपांशु ने उस की पीठ पर लटके हुए बैग में से उस की वाटर बौटल निकाल कर नीचे रख दी.
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