जय सीतापुर नामक नगर में रहता था. वह बेसब्री से अपने स्कूल में होली में होली के उत्सव का इंतजार कर रहा था. हरेक स्टूडेंट को प्राकृतिक सामग्री से होली का रंग बनाने का काम सौंपा गया था.
जय को खूब मजा आ रहा था. उस के दोस्त रमन के पिता सूखे फूलों और सब्जियों से होली के रंग बनाते थे.
जय रमन के घर गया और उस ने हल्दी, चुकंदर, पलाश, पालक, गाजर और धनिया से प्राकृतिक रंग बनाने सीखे.
जय के चाचा संजय मुंबई से उस से मिलने आए थे और उसे होली के लिए प्राकृतिक रंग बनाते देख कर काफी खुश हुए.
वे जय को अपने साथ बाहर ले जाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने सोचा कि वह होली की तैयारी में व्यस्त होगा. जय संजय अंकल के साथ समय बिताना चाहता था और बाहर जाने की जिद कर रहा था.
“लेकिन तुम्हें भी स्कूल में उत्सव के लिए कुछ " गीतों का अभ्यास करना है और रंग बनाने हैं," अंकल ने जय को उस की जिम्मेदारियों की याद दिलाते हुए कहा.
“अंकल, आप उस की चिंता मत करो. मैं समय पर सबकुछ पूरा कर लूंगा. मेरे पास अभी भी एक सप्ताह का समय है. मैं आप के साथ बाहर जाना चाहता हूं. आप मुश्किल से कुछ दिन के लिए हम से मिलने आते हैं," जय बोला.
“ठीक है, यह तो बहुत अच्छी बात है, चलो, मेरे साथ."
जय और संजय अंकल लखनऊ के बौटेनिकल गार्डन, केसरगंज और हजरतगंज के बाजार गए थे.
अंकल ने जय के लिए धूप का चश्मा और एक कार खरीदी. जय बहुत खुश हुआ.
जब वे घर लौटे तो रमन ने पूछा, “आप लखनऊ घूमने गए थे, कैसा लगा?”
जय ने गर्व से कहा, "बड़ा मजेदार था. मेरे अंकल ने मेरे लिए एक बहुत महंगी कार खरीदी और इन धूप के चश्मों को देखो, ये बहुत अच्छे हैं, लेकिन तुम यह नहीं समझ पाओगे कि यह कितने महंगे हैं."
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