संतोष ने बैरिकेड के ऊपर से दूसरी तरफ देखा. लोग छोटेछोटे समूह में एकत्रित थे. "क्या वे सेना के अधिकारी हैं? गार्ड्स हैं?" संतोष हैरान था. उस ने हरी वर्दी पहने लोगों को देखा.
संतोष ने अपनी गरदन टेढ़ी की पहरेदारों के परे दूर लकड़ी की डंडियों से बना एक परदा था. कुछ बड़ा घटित होने वाला था. संतोष को यह मालूम था, उस ने इतनी सारी जासूसी कहानियां देखी और पढ़ी थीं. वह उन का हिस्सा बनना चाहता था और यहां उस के लिए मौका भी था.
संतोष ने पीछे जा कर अश्विन का हाथ पकड़ लिया. अश्विन उस का दोस्त और जासूस साथी था. उसने बताया कि वह क्या कर रहा था. छोटी मीनू को भी टैग किया गया.
"चली जाओ, मीनू अपना रेत का महल बनाओ," संतोष अपनी बहन पर चिल्लाया.
"नहीं, मैं वोटसन बनना चाहती हूं," मीनू अपने भाई को अच्छी तरह जानती थी. यदि वह शरलौक बनना चाहता था तो उसे वौटसन बनना होगा. कोई बातचीत नहीं, उस ने अपना सिर ऊंचा उठाया. संतोष उसे देख कर मुसकराया और उसे अपने पीछे चलने के लिए कहा.
"श्श्श," जब वे दोनों एक खास बिंदु पर पहुंचे तो उस ने उन्हें रोक दिया. यह वही जगह थी जहां से वे दूसरी तरफ आसानी देख सकते थे.
अश्विन ने पलट कर देखा, "यह बिलकुल वैसा ही है जैसा तुम ने कहा, संतोष यहां सेना है." इसे देख कर अश्विन सचमुच हैरान रह गया था. "लेकिन क्यों? युद्ध तो नहीं हो सकता, है न?"
"तुम क्या सोचते हो कि सेना किस की रक्षा कर सकती है?" संतोष ने अपनी सोच पर पानी फेर दिया, "तुम को क्या लगता है कि इन लकड़ी की डंडियों के परे उस ओर क्या है?"
"अन्ना, मुझे देखने दो," मीनू ने कुछ जगह पाने के लिए हाथापाई की. लड़कों ने नाखुश हो कर उसे जाने दिया.
"मैं इसे देखती हूं," मीनू खुशी से उछल पड़ी. "वे टोकरियों की तरह दिखते हैं.
"बास्केट यानी टोकरियां, इस का क्या मतलब है. सेना टोकरियों की सुरक्षा में क्यों खड़ी होगी? हमें तुम्हारी आंखों की जांच करानी होगी, मीनू," अश्विन ने मीनू के सुझाव को नजरअंदाज कर दिया.
संतोष ने देखा. "मीनू सही कह रही है. वह कुछ उलटी हुई टोकरियां हैं. उनके अंदर क्या हो सकता है?"
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