उसे इतना शांत और उदास देख कर लता ने पूछा, "क्या हुआ मैडी? तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही है."
"मैं ठीक हूं, मम्मी."
"जाओ, जल्दी से हाथमुंह धो लो और कुछ खा लो. हमें शहर जाना है."
"मैं कहीं नहीं जाना चाहता, मम्मी.”
"क्या हुआ मैडी ? दीवाली आने में बस चार दिन बाकी हैं. सुबहसुबह तुम पटाखे खरीदने के लिए कितने उतावले थे. अगर तुम्हें कोई बात परेशान कर रही है तो मुझे बताओ. मैं उसे दूर करने की कोशिश करूंगी," लता ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और पूछा.
मैडी अब और नहीं रुक सका और उस ने कहा, "मम्मी, आज सर ने हमें दीवाली पर पटाखे जलाने से मना किया है."
"यह तो रोशनी और खुशी का त्योहार है. हर साल हम इस दिन खूब आतिशबाजी करते हैं फिर इस साल ऐसा क्या हुआ कि सर ने तुम्हें मना कर दिया?”
“सिर्फ मुझे ही नहीं, उन्होंने स्कूल के सभी छात्रों से इस दिन को खुशी से मनाने को कहा, लेकिन बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए उन्होंने हमें पटाखे न जलाने की सलाह दी. उन्होंने हमें बाजार से खरीदी गई मिठाइयों से भी बचने को कहा है. उन्होंने हमें इस की शपथ भी दिलाई.”
लता को यह सुन कर बुरा लगा. वह अपने बेटे मैडी को खुश देखना चाहती थी, चाहे कुछ भी हो, लेकिन उस के टीचर ने उसकी खुशी पर विराम लगा दिया था. स्कूल के दूसरे बच्चों के लिए भी यही सच था.
हर साल वे आसमान में आतिशबाजी छुड़ा कर रंगबिरंगे पैटर्न बनाते थे. वे अपने दोस्तों के लिए बाजार से मिठाइयां खरीदते थे, लेकिन इस साल ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला था. आतिशबाजी और मिठाइयों के शोर के बिना दीवाली मनाने का विचार ही उन के उत्साह को कम कर देता है.
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