जो ढूंढ़े वही पाए
Champak - Hindi|November Second 2024
अपनी ठंडी, फूस वाली झोंपड़ी से राजी बाहर आई. उस के छोटे, नन्हे पैरों को खुरदरी, धूप से तपती जमीन झुलसा रही थी. उस ने सूरज की ओर देखा, वह अभी आसमान में बहुत ऊपर नहीं था. उस की स्थिति को देखते हुए राजी अनुमान लगाया कि लगभग 10 बज रहे होंगे.
सर्वमित्रा
जो ढूंढ़े वही पाए

अम्मां और अप्पा खेतों में काम करने के लिए शायद जा चुके थे. उस ने रसोई में इधरउधर देखा और अपना नाश्ता ढूंढ़ निकाला. एक कटोरी बचा हुआ चावल, दही और प्याज के साथ मिक्स्ड किया हुआ. म्म्म्, यह उसे बहुत पसंद था.

स्कूली दिनों अम्मां राजी को जल्दी भेज देती थीं, ताकि स्कूल में मिलने वाला नाश्ता वह खा सके, हालांकि राजी को नाश्ता ज्यादा पसंद नहीं था. लेकिन उस ने कभी शिकायत नहीं की.

स्वादिष्ठ नाश्ते से पेट की भूख शांत होने के बाद उस ने चारों ओर देखा. एक कोने में रस्सी का एक लंबा टुकड़ा पड़ा था. उसने सोचा कि यह तो कूदने वाली रस्सी है. उस ने रस्सी उठाई और कूदते हुए गांव की ओर जाने लगी, जहां शनिवार और रविवार को गांव के सभी बच्चे दिन भर एकसाथ खेलने के लिए इकट्ठा होते थे. राजी वहीं रुक गई. जमीन पर वह चमकती हुई चीज क्या थी? क्या वह सचमुच कीचड़ भरी सड़क पर आसमान का प्रतिबिंब देख रही थी?

वह निकट गई, उस की आंखें चौड़ी हो गईं. ओह, यह तो एक आईना है. एक सजावटी दिखने वाला आईना, हालांकि यह काफी पुराना लग रहा था. राजी ने उसे उठाया, उस का चमकता हुआ चेहरा उसकी ओर देख रहा था.

"हैलो, क्या यह किसी का है?" राजी ने पुकारा, लेकिन वहां पर उसे सुनने वाला कोई नहीं था. उस ने खुशी से कंधे उचका दिए.

"जो खोजे, वही पाए," उसे याद आया कि एक बार मां ने कहा था जब उन्हें 20 रुपए का नोट सड़क पर मिला था.

रस्सी को गरदन पर लटका कर, आईने को हाथों में संभाल कर उस ने घर की ओर दौड़ लगाई.

हफ, हफ, हफ...

هذه القصة مأخوذة من طبعة November Second 2024 من Champak - Hindi.

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