सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर
Aha Zindagi|August 2024
क़लम-कहानी की लाग ने उन्हें रंगमंच से सिने जगत और वहां से आमजन के दिलों तक पहुंचा दिया। तिरंगा और क्रांतिवीर जैसी फिल्में बनाने वाले मेहुल को अपने दौर के सिनेमा का ट्रैक बदलने के साथ ही राजकुमार, नाना पाटेकर और अमिताभ बच्चन जैसी क़द्दावर हस्तियों के कॅरियर में अहम मोड़ लाने का श्रेय भी जाता है। एक लेखक, रंगमंच हस्ती और फिल्म निर्देशक के रूप में आधी सदी तक दर्शकों की नब्ज पकड़े रखने वाले मेहुल कुमार हैं इस बार हमारे अहा ! अतिथि। मेहुल बयां कर रहे हैं अपना सफ़रनामा, जिसमें परदे के पीछे के कई रोचक क़िस्से भी चले आए हैं।
सुधा उपाध्याय
सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर

इब्राहिम से मेहुल कुमार तक...

इब्राहिम से पहले मेहुल बलूच और फिर मेहुल कुमार बनकर तय हुआ लेखक, अदाकार और निर्देशक बनने का सफ़र।

'जनम जनम ... ' से मिला पहला ब्रेक

मैं 1976 में मुंबई आया और अगले ही साल 1977 में मेरी पहली फिल्म रिलीज़ हुई। इसका हिंदी में 'फिर जनम लेंगे हम' और गुजराती में 'जनम जनम ना साथी' नाम था। गुजराती दर्शकों के लिए नई तरह की पिक्चर थी, इसीलिए वहां ख़ूब चली। पर गुजराती कल्चर का रंग ज़्यादा होने से हिंदी में इतनी हिट नहीं हुई। यहां से मेरी यात्रा शुरू हुई। इस फिल्म के गाने भी मैंने लिखे थे। इस पर उन दिनों के वरिष्ठ गीतकार इंदीवर जी ने कहा था- 'मेहुल जी! स्टोरी, स्क्रीनप्ले, संवाद, गीत... इतना मत करो। भैया, कम से कम गाने तो लिखना बंद करो। गाने हमारे लिए रखो।' मैंने उनको कहा कि सर ! आज के बाद गाने नहीं लिखूंगा। उसके बाद मैंने कभी गाने नहीं लिखे।

मेरे पुरखे बलूचिस्तान से महाराजा रणजीत सिंह के समय भारत आए थे। कई पीढ़ियों से भारत में रहते-रहते भारतीय हो गए। दादा नूर मोहम्मद की ऊंचाई साढ़े छह फीट थी। वे महाराजा रणजीत सिंह के विशेष अंगरक्षक थे। पिताजी का नाम इब्राहिम था, इस तरह मेरा नाम मोहम्मद इब्राहिम बलूच हुआ। कॉलेज में पहुंचने के बाद मैं अपना उपनाम 'मेहुल' लिखने लगा। मेरे सारे उपन्यास मेहुल बलूच नाम से ही छपे हैं। इसी नाम से मैंने गाने भी लिखे। मेहुल के पीछे कुमार लगाने का आइडिया ताहिर हुसैन साहब का था। उनकी फिल्म कर रहा था, तब उन्होंने कहा कि 'बलूच' निकालकर 'कुमार' लगा दो, बलूच बोलने में मुश्किल लगता है।

पिता से विरासत में मिली कला

هذه القصة مأخوذة من طبعة August 2024 من Aha Zindagi.

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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
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अन्न उपजाए अंग भी उगाए

बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।

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November 2024
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
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इसे पढ़ने का फ़ैसला करें

...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...

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November 2024
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
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जहां अकबर ने आराम फ़रमाया

लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....

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November 2024
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
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पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा

अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।

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November 2024
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
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चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श

मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।

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November 2024
सदियों के शहर में आठ पहर
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सदियों के शहर में आठ पहर

क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!

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November 2024
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
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... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....

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November 2024
एक वीगन का खानपान
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एक वीगन का खानपान

अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...

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November 2024
सदा दिवाली आपकी...
Aha Zindagi

सदा दिवाली आपकी...

दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।

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November 2024
'मां' की गोद भी मिले
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'मां' की गोद भी मिले

बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।

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November 2024