श्रीकृष्ण भारतभूमि की पहचान हैं, भारत की आत्मा हैं। एकमात्र श्रीकृष्ण ही हैं जिनके चरित्र में भारत की जीवनशैली और जीवन दर्शन अपनी संपूर्णता और समग्रता में अभिव्यक्त हुआ है। श्रीकृष्ण विश्व मानवता के मध्य भारतीयता के कालजयी 'राजदूत' हैं और उनके श्रीमुख से कही गई श्रीमद्भागवतगीता मानव जीवन के प्रति भारत का 'घोषणापत्र' है। श्रीकृष्ण ही हैं जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व में प्रकृति से साहचर्य, संयुक्त परिवार, निष्काम कर्म, हर्ष-विषाद में समभाव, प्रेम, तप और त्याग, सज्जनों का उत्थान और दुर्जनों का नाश तथा विश्व बंधुत्व जैसे भारतीय जीवन मूल्यों के दर्शन एक जगह होते हैं। भारतीय संस्कृति में विष्णु, शिव, श्रीराम, बुद्ध और महावीर सहित अनेक आदर्श आदरणीय हैं किंतु कृष्ण का 'कैनवास' इन सबकी अपेक्षा सर्वाधिक वैविध्यपूर्ण और विराट है। उन्हें इसीलिए सोलह कलाओं से परिपूर्ण अवतार पुरुष कहा गया है क्योंकि अपनी लीलाओं के माध्यम से उन्होंने जीवन को पूरे 360 डिग्री में परिभाषित किया है और मनुष्य मात्र के लिए एक ऐसी जीवनशैली प्रतिपादित की है, जिसकी दूसरी मिसाल विश्वभर में दुर्लभ है।
काव्य-पुराणों से कलाओं में सुशोभित
श्रीकृष्ण महामानव हैं और अपनी उद्दात और उच्च महिमा के कारण भगवान के रूप में अपने जीवनकाल से ही पूज्य हैं। इस धरती से अपनी जीवनलीला का संवरण करने के बाद उनके सद्कर्मों तथा सद्गुणों का कीर्तन करते हुए ऋषियों से पौराणिकों तक और कवियों से कलाकारों तक ने कृष्ण का चित्रण कर अपनी कलम और कला को कृतार्थ किया है। श्रीकृष्ण के लोकप्रचलित असंख्य नामों की तरह ही उनके चरित्र की झांकी काव्य-पुराणों से कलाओं तक में अनगिनत रूपों में सजाई गई हैं। यह श्रीकृष्ण की महिमा का ही प्रताप है कि लोक ने उनके हर रूप को अंगीकार किया है और कृष्ण पथ पर चलकर जीवन के सच्चे प्रकाश की अनुभूति की है। तभी तो आज भी लोक प्रतिवर्ष हिंदू पंचाग के भाद्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर उनका जन्मदिन भक्तिभाव व हर्षोल्लास से मनाकर धन्यता का अनुभव करता है।
भाद्र के जागे भाग रात्रि में प्रकटे नंदलाल
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कथाएं चार, सबक़ अपार
कथाएं केवल मनोरंजन नहीं करतीं, वे ऐसी मूल्यवान सीखें भी देती हैं जो न सिर्फ़ मन, बल्कि पूरा जीवन बदल देने का माद्दा रखती हैं - बशर्ते उन सीखों को आत्मसात किया जाए!
मनोरम तिर्रेमनोरमा
अपने प्राकृतिक स्वरूप, ऋषि-मुनियों के आश्रम, सरोवर और सुप्रसिद्ध मेले को लेकर चर्चित गोंडा ज़िले के तीर्थस्थल तिर्रेमनोरमा की बात ही निराली है।
चाकरी नहीं उत्तम है खेती...
राजेंद्र सिंह के घर पर किसी ने खेती नहीं की। लेकिन रेलवे की नौकरी करते हुए ऐसी धुन लगी कि असरावद बुजुर्ग में हर कोई उन्हें रेलवे वाले वीरजी, जैविक खेती वाले वीरजी, सोलर वाले वीरजी के नाम से जानता है। उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।
उसी से ग़म उसी से दम
जीवन में हमारे साथ क्या होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उस पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। इसी पर निर्भर करता है कि हमें ग़म मिलेगा या दम। यह बात जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना पर लागू होती है।
एक कप ज़िंदगी के नाम
सिडनी का 'द गैप' नामक इलाक़ा सुसाइड पॉइंट के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस स्थान से जुड़ी एक कहानी ऐसी है, जिसने कई जिंदगियां बचाईं। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जिसने अपनी साधारण-सी एक पहल से अंधेरे में डूबे हुए लोगों को एक नई उम्मीद की किरण से रूबरू कराया।
कौन हो तुम सप्तपर्णी?
प्रकृति की एक अनोखी देन है सप्तपर्णी। इसके सात पर्ण मानो किसी अदृश्य शक्ति के सात स्वरूपों का प्रतीक हैं और एक पुष्प के साथ मिलकर अष्टदल कमल की भांति हो जाते हैं। हर रात खिलने वाले इसके छोटे-छोटे फूल और उनकी सुगंध किसी सुवासित मधुर गीत तरह मन को आनंद विभोर कर देती है। सप्तपर्णी का वृक्ष न केवल प्रकृति के निकट लाता है, बल्कि उसके रहस्यमय सौंदर्य की अनुभूति भी कराता है।
धम्मक-धम्मक आत्ता हाथी...
बाल गीतों में दादा कहकर संबोधित किया जाने वाला हाथी सचमुच इतना शक्तिशाली होता है कि बाघ और बब्बर शेर तक उससे घबराते हैं। बावजूद इसके यह किसी पर भी यूं ही आक्रमण नहीं कर देता, बल्कि अपनी देहभाषा के ज़रिए उसे दूर रहने की चेतावनी देता है। जानिए, संस्कृत में हस्ती कहलाने वाले इस अलबेले पशु की अनूठी हस्ती के बारे में।
यह विदा करने का महीना है...
साल समाप्त होने को है, किंतु उसकी स्मृतियां संचित हो गई हैं। अवचेतन में ऐसे न जाने कितने वर्ष पड़े हुए हैं। विगत के इस बोझ तले वर्तमान में जीवन रह ही नहीं गया है। वर्ष की विदाई के साथ अब वक़्त उस बोझ को अलविदा कह देने का है।
सर्दी में क्यों तपे धरतीं?
सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
उज्ज्वल निर्मल रतन
रतन टाटा देशवासियों के लिए क्या थे इसकी एक झलक मिली सोशल मीडिया पर, जब अक्टूबर में उनके निधन के बाद हर ख़ास और आम उन्हें बराबर आत्मीयता से याद कर रहा था। रतन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और महज़ दो माह पहले ही उनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा भी गया। बावजूद इसके बहुत कुछ लिखा जाना रह गया, और जो लिखा गया वह भी बार-बार पढ़ने योग्य है। इसलिए उनके जयंती माह में पढ़िए उनकी ज़िंदगी की प्रेरक किताब। रतन टाटा के समूचे जीवन को चार मूल्यवान शब्दों की कहानी में पिरो सकते हैं: परिवार, पुरुषार्थ, प्यार और प्रेरणा। उन्हें नमन करते हुए, आइए, उनकी बड़ी-सी ज़िंदगी को इस छोटी-सी किताब में गुनते हैं।