दीपकों की लौ पत्थर की पुरानी दीवारों पर नृत्य कर रही थी, उनका कोमल प्रकाश शीतल फ़र्श पर पद्मासन में बैठे पांच कलाकारों के चेहरों पर खेल रहा था। कमरे में गेंदे के फूलों की मीठी सुगंध और प्राकृतिक रंगों की महक तैर रही थी। संकरी खिड़कियों से प्रभात की पहली किरणें झांक रही थीं। उस्ताद गोविंद सिंह विशाल कपड़े पर झुके हुए थे। उनके अनुभवी हाथ नीले रंग से कृष्ण के मोरमुकुट को सजा रहे थे। उनके अंगरखे का गहरा लाल रंग धोती की सफ़ेदी से विपरीत था, दोनों वस्त्र वर्षों की कलात्मक साधना के धब्बों से रंगे थे। उनके दाहिनी ओर युवा लक्ष्मण कमल के फूलों की जटिल किनार की बनावट पर काम कर रहा था, हर पंखुड़ी को अद्भुत सटीकता से साकार कर रहा था। उसकी पलक जितनी महीन कूची हर पत्ती की नस को उकेर रही थी। पीसी हुई मैकाइट से तैयार किया गया मरकत हरा रंग जैसे जीवंत हो उठा था। कार्यशाला की दीवारें अपनी कहानियां कह रही थींपूर्ण पिछवाई चित्र दिव्यलोक की खिड़कियों की तरह टंगे थे। एक विशाल चित्र में कृष्ण गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए थे, पर्वत को मिट्टी के भूरे और स्लेटी रंगों से दर्शाया गया था, जिसके नीचे बारीकी से चित्रित सैकड़ों ग्रामीण शरण ले रहे थे। दूसरे में कृष्ण वृंदावन के दिव्य उद्यान में गोपियों से घिरे थे, जिनके भक्तिभाव को इतनी कोमलता से उभारा गया था कि चित्र उनके प्रेम से सांस लेता प्रतीत होता था।
कोने में बुजुर्ग राघव पत्थर के खरल में रंग पीस रहे थे। उनकी लयबद्ध गति स्वयं में एक ध्यान थी। सिंदूर का गहरा लाल, हरताल का चमकीला पीला, और शंख से निकला शुद्ध श्वेत रंग दिव्य छवियों में रूपांतरित होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके झुर्रीदार हाथ पूर्ण आत्मविश्वास से चल रहे थे, मानो उन्हें पता हो कि हर रंग को किस सटीक बारीकी तक पीसना है।
चंपा और चंपेली नामक दो बहनें कृष्ण की दिव्य गायों के दृश्य पर साथ-साथ काम कर रही थीं। उनकी कूचियां अनजाने में एक लय में चल रही थीं- गायों के शरीर के कोमल भूरे रंग, उनके स्वर्णिम आभूषणों की चमक, हरे-भरे चरागाह के रंग को उकेरते हुए उनकी हाथी दांत की चूड़ियों की धीमी आवाज़ें कार्यशाला के मधुर सृजन संगीत में घुल-मिल रही थीं।
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अन्न उपजाए अंग भी उगाए
बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।
इसे पढ़ने का फ़ैसला करें
...और जीवन में ग़लत निर्णयों से बचने की प्रक्रिया सीखें। यह आपके हित में एक अच्छा निर्णय होगा, क्योंकि अच्छे फ़ैसले लेने की क्षमता ही सुखी, सफल और तनावरहित जीवन का आधार बनती है। इसके लिए जानिए कि दुविधा, अनिर्णय और ख़राब फ़ैसलों से कैसे बचा जाए...
जहां अकबर ने आराम फ़रमाया
लाव-लश्कर के साथ शहंशाह अकबर ने जिस जगह कुछ दिन विश्राम किया, वहां बसी बस्ती कहलाई अकबरपुर। परंतु इस जगह का इतिहास कहीं पुराना है। महाभारत कालीन राजा मोरध्वज की धरती है यह और राममंदिर के लिए पीढ़ियों तक प्राण देने वाले राजा रणविजय सिंह के वंश की भी। इसी इलाक़े की अनूठी गाथा शहरनामा में....
पर्दे पर सबकुछ बेपर्दा
अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।
चंगा करेगा मर्म पर स्पर्श
मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की एक बिना औषधि वाली उपचार पद्धति है। यह सिखाती है कि महान स्वास्थ्य और ख़ुशी कहीं बाहर नहीं, आपके भीतर ही है। इसे जगाने के लिए ही 107 मर्म बिंदुओं पर हल्का स्पर्श किया जाता है।
सदियों के शहर में आठ पहर
क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!
... श्रीनाथजी के पीछे-पीछे आई
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....
एक वीगन का खानपान
अगर आप शाकाहारी हैं तो आप पहले ही 90 फ़ीसदी वीगन हैं। इन अर्थों में वीगन भोजन कोई अलग से अफ़लातूनी और अजूबी चीज़ नहीं। लेकिन एक शाकाहारी के नियमित खानपान का वह जो अमूमन 10 प्रतिशत हिस्सा है, उसे त्यागना इतना सहज नहीं । वह डेयरी पार्ट है। विशेषकर भारत के खानपान में उसका अतिशय महत्व है। वीगन होने की ऐसी ही चुनौतियों और बावजूद उनके वन होने की ज़रूरत पर यह अनुभवगत आलेख.... 1 नवंबर को विश्व वीगन दिवस के ख़ास मौके पर...
सदा दिवाली आपकी...
दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।
'मां' की गोद भी मिले
बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।