يحاول ذهب - حر
लौट आओ प्यारी गौरैया
March 2025
|Aha Zindagi
गौरैया रोज़ आती। घर आंगन में सुबह से चींचीं करती, फुदकती, दाना चुगती और ज़रा-सी आहट पर फुर्र हो जाती। फिर एक दिन वह नहीं लौटी। आख़िर क्यों दूर हो गई हमसे...?

मैंगौरैया हूं। हां, वही छोटी-सी फुदकती हुई चिड़िया, जो कभी तुम्हारे आंगन, बालकनी और खेतों में बेफिक्र उड़ती थी। याद है चुगती थी? पर अब मैं कहां हूं? क्या तुम्हें मेरी कमी महसूस होती है? तुम इंसानों से मेरी दोस्ती बहुत पुरानी है। जब तुमने खेतों में हल चलाना शुरू किया था, मैं वहीं थी । मिट्टी के घरों की छतों पर मेरा बसेरा था और तुम्हारी कहानियों, लोकगीतों तथा मंदिरों के आंगन में मेरी मौजूदगी थी। मेरी चहचहाहट से सुबह की ताज़ी हवा में एक नई उमंग भर जाती थी। लेकिन अब तेज़ी से बदलते माहौल ने मुझे असहाय बना दिया है। शहरीकरण, प्रदूषण और आधुनिक तकनीकी विकास ने मेरे प्राकृतिक आवास को सिकोड़ दिया है।
पर्यावरण की सेहत का पैमाना हूं मैं...
मैं सिर्फ़ एक छोटी चिड़िया नहीं हूं, बल्कि मैं उस जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हूं जिसे तुम अक्सर अनदेखा कर देते हो। हर दिन मैं औसतन 500 छोटे कीड़ों का सेवन करती हूं जिससे खेतों में हानिकारक कीड़ों की संख्या नियंत्रण में रहती है। कई छोटे पौधों के परागण में मेरी भूमिका होती है, जिससे पौधों की वृद्धि और फलों का उत्पादन बेहतर होता है। मेरी मौजूदगी पर्यावरण की सेहत का पैमाना है। अगर मेरी संख्या घटने लगे तो समझ लो कि आसपास का पर्यावरण बिगड़ रहा है।
هذه القصة من طبعة March 2025 من Aha Zindagi.
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