प्राचीन भारत में अपने केशों को सजाने संवारने को लेकर भी महिलाएं कितनी सजग और सुरुचि संपन्न थीं, यह बात डॉ. प्रभुदयाल अग्निहोत्री की किताब पतंजलि कालीन भारत में उद्धृत इस अंश से समझ में आती है. यह बात उस दौर की पाषाण और टेराकोटा मूर्तियों को देखने से भी पता चलती है.
बिहार की राजधानी पटना में पिछले दिनों यह बात एक और तरीके से जाहिर हुई, जब राज्य के अत्याधुनिक बिहार संग्रहालय में मॉडल उस दौर की केश सज्जा को जीवंत बनाने के लिए रैंप पर उतर गईं. मंच पर दीदारगंज की यक्षिणी, तारा, ब्राह्मणी, गुप्तकालीन परिचारिका और मुमताज महल का रूप धर उनके जैसी केश सज्जा दिखाते हुए जब पटना महिला कॉलेज की युवतियां रैंप पर कैटवॉक कर रही थीं, तो दर्शकों को लगा कि जैसे पुराने जमाने की एक खिड़की खुल गई है, जिससे उस दौर का फैशन सेंस और हेयर स्टाइल झांक रहा है जो किसी भी सूरत में आज के हेयर स्टाइल से कमतर नहीं है, कई मायने में तो बेहतर ही है. बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय के सहयोग से बिहार म्यूजियम ने यह आयोजन इसी मकसद से कराया था. इस आयोजन में जावेद हबीब की टीम ने केश सज्जा की और निफ्ट पटना ने प्रतिभागियों के लिए उस दौर के आभूषण और वस्त्र तैयार किए.
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