'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
India Today Hindi|December 25, 2025
गया शहर के माड़रपुर में गांधी चौक के पास एक बैटरी रिक्शे पर बैठी चिंता देवी मिलती हैं. वे बताती हैं कि वे कचहरी जा रही हैं. उनके पास अपनी कोई सवारी नहीं है, सरकार की तरफ से भी कोई वाहन नहीं मिला है.
पुष्यमित्र
'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'

इसलिए वे व्यक्तिगत, सरकारी और राजनैतिक हर तरह के कामकाज के लिए इस बैटरी रिक्शा, जिसे गया शहर में टोटो कहते हैं, पर ही सफर करती हैं. वह भी रिजर्व करके नहीं, शेयर करके. चिंता देवी इस शहर की डिप्टी मेयर हैं. गया नगर निगम में जहां नगर आयुक्त के लिए वाहन का प्रावधान है, दोनों उप नगर आयुक्त के लिए भी वाहन का इंतजाम है, अन्य कार्यों को संपादित करने वाले सिटी मैनेजर और स्वच्छता पदाधिकारी के लिए भी वाहन का इंतजाम है, मगर डिप्टी मेयर के लिए किसी वाहन का इंतजाम सरकार की तरफ से नहीं है.

उन्हें यात्रा भत्ता के तौर पर दस हजार रुपए प्रति माह मिलते हैं. वह भी चार-पांच महीने में एक बार, ऐसे में चिंता देवी के लिए अपने काम से कहीं आना-जाना एक मुश्किल काम है. वे कहती हैं, "हम गरीब घर से हैं, अनुसूचित जाति से आते हैं, हमारे पास इतना पैसा कहां कि अपनी गाड़ी रखें. एतना बड़ा क्षेत्र है, मानपुर जाना हो या बेलागंज जाना हो तो हम टोटो (बैटरी रिक्शा) से जाते हैं. किसी को साथ ले जाते हैं, उसका भी भाड़ा देना पड़ता है. पहले वाले डिप्टी मेयर को गाड़ी मिलती थी, हमको नहीं मिली. हम सरकार को लिखे भी, मुख्यमंत्री को भी लिखे, लेकिन हमारी समस्या का समाधान नहीं हुआ. अड़ोस-पड़ोस का लोग, उनीयन (यूनियन) का लोग सब बोलता है, अब आप डिप्टी मेयर हो गई हैं, टोटो पर काहे चलती हैं. लेकिन हम क्या कर सकते हैं?"

डिप्टी मेयर बनने से पहले चिंता देवी इसी गया नगर निगम में सफाईकर्मी थीं. वे बताती हैं, "पहले झाडूदारिन थे, सरकारी नौकरी थी. सफाई कर्मियों के उनियन (यूनियन) का अध्यछ भी थे, उसकी मीटिंग में जाते थे. उनियन के एक नेता अमृत बाबू काफी मदद करते थे. पहले भी नगर निगम के अधिकारी हमें बैठकों में बुलाते थे. 2020 में रिटायर होकर सब्जी बेचने लगी. पब्लिक आकर कहने लगी कि आप लोगों का आरक्षण है तो चुनाव में खड़े हो जाइए. खड़े हो गए और जीत भी गए."

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