हरियाणा के गुड़गांव निवासी विश्व पल्लव श्रीवास्तव जगजाहिर समलैंगिक या ओपनली गे हैं. 1 जुलाई से लागू नए कानूनों में आइपीसी की धारा 377 की गैरमौजूदगी को लेकर वे बहुत चिंतित हैं. वे कहते हैं, "जो पुरुष थोड़े अलग दिखते हैं उनको लोग छक्का, स्वीट वगैरह बोलकर तंग करते हैं. तिसपर जो ओपनली गे हैं, उनका अक्सर तथाकथित स्ट्रेट लड़के फायदा उठाते हैं. बहुत बार ऐसा होता है कि जो शख्स अधिक फेमिनिन लगते हैं, उनके साथ पुरुषों द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने की घटनाएं होती हैं." श्रीवास्तव कानूनी रूप से असहाय हो चुके इस समुदाय को लेकर यह भी कहते हैं, "यह बहुत साधारण सी बात है, फिर भी सरकार ने इसका ध्यान नहीं रखा है. पुरुषों के साथ हुई यौन शोषण की घटनाएं पहले भी बहुत कम रिपोर्ट होती थीं. अब तो इनकी शिकायत करने का भी स्कोप खत्म हो गया है. सहमति या असहमति का भेद नहीं है. सेक्स के साथ गे रेप भी लीगल हो गया है."
विश्व पल्लव की यह फिक्र जायज है. भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) को 30 जून को रात 12 बजे से खत्म कर दिया गया और 1 जुलाई से इसकी जगह लागू हो गई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस). आइपीसी की धारा 377 महिला, पुरुष और जानवरों के साथ हुए 'अप्राकृतिक' यौनाचार को अपराध बनाती थी लेकिन यह बीएनएस में नहीं रही. हालांकि यह धारा की खामी ही थी कि सहमति और असहमति, दोनों से ही बने समलैंगिक यौन संबंधों को वह अप्राकृतिक मानती थी. धारा में सुधार के बजाए इसका पूरी तरह खत्म हो जाना अब पुरुषों के साथ जबरन एनल सेक्स को कानूनी दायरे से बाहर कर देता है.
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