पखवाड़े भर देश उम्मीद कर रहा होगा कि भाग्य या नियति का कुछ हिस्सा हमारे एथलीटों पर बरसे. इनमें नीरज चोपड़ा और पी.वी. सिंधू सरीखी मशहूर हस्तियां हैं, तो कम जाने-माने खेलों में शोर-शराबे के बिना देश की नुमाइंदगी करने वाली दूसरे एथलीट भी. कोलकाता में जन्मे और जर्मनी में प्रशिक्षित अनुष अग्रवाल को लीजिए. वे कोरियोग्राफ किए गए फैंसी फुटवर्क ड्रिल से मिलती-जुलती घुड़सवारी की ड्रेसेज स्पर्धा में हिस्सा लेने वाले पहले भारतीय हैं. ओलंपिक वह वक्त भी होता है जब तमाम देश अपने पसंदीदा शगल में मन रमाते हैं. यह है 'कितने पदक जीतेंगे' की कयासबाजी का खेल. नीरज चोपड़ा, पहलवान अंतिम पंघाल और धावक अविनाश साबले सरीखे पेरिस जाने वाले एथलीटों को सहारा दे रही जेएसडब्ल्यू स्पोर्ट्स में खेल, उत्कृष्टता और स्काउटिंग की प्रमुख मनीषा मल्होत्रा का कहना है कि भारत की पदक तालिका “पूरी तरह निशानेबाजी पर निर्भर करेगी." यह भी कि “मैं मानती हूं पहले दो दिन शूटिंग चल गई तो यह बिल्कुल अलग ओलंपिक होगा." हमारे 117 खिलाड़ियों के जत्थे में 21 निशानेबाज हैं, इसलिए भारत उम्मीद करेगा कि उनका आकलन सही निकले. इस अंक में हम 13 खेलों के 17 चैंपियनों का लेखा-जोखा लेकर आए हैं. कुछ ओलंपिक के अखाड़े में पहला कदम रख रहे हैं, तो हॉकी खिलाड़ी पी.आर. श्रीजेश और मनप्रीत सिंह जैसे कुछ का यह चौथा ओलंपिक होगा. ओलंपिक आखिरकार दो हफ्तों तक हर्षोल्लास से भरे रोमांचकारी मुकाबलों की गारंटी है, जिसमें हम दुनिया भर के बेहतरीन एथलीटों का हुनर और दमखम देखेंगे. अप्रैल में मीडिया से बात करते हुए चोपड़ा ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है लोग उसी उत्साह से ओलंपिक देखेंगे जैसे आइपीएल देखते हैं. उन्होंने कहा, “हमारी खेल संस्कृति इसी तरह बदलेगी.” बिल्कुल हो सकता है कि इसी तरह कोई बच्चा भाला या हॉकी स्टिक उठाने के लिए प्रेरित हो और आगे चलकर ओलंपिक पदक जीत लाए.
कामयाबी कायम रखने की ललक
पुरुष टीम
खेल: हॉकी
उपलब्धिः टोक्यो 2020 ओलंपिक में कांस्य
कैसे क्वालिफाइ किया: 2022 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"