लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पहली प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के लिए जगह तलाशने में पार्टी नेताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. पिछली सभी प्रदेश कार्यसमिति की बैठकों में करीब 600 नेता-कार्यकर्ता बुलाए जाते थे. इस बार के लोकसभा चुनाव में 62 से घटकर महज 33 सीटों पर सिमटने वाली पार्टी ने ब्लॉक तक के नेताओं को बुलावा भेजा था. ऐसे में प्रदेश कार्यसमिति में आने वाले नेताओं की संख्या 3,000 तक पहुंच गई थी. काफी खोजबीन के बाद लखनऊ की आशियाना कॉलोनी में डॉ. राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के आंबेडकर सभागार को 14 जुलाई को होने वाली अभूतपूर्व प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के लिए उपयुक्त पाया गया.
इतनी बड़ी कार्यसमिति के आयोजन के पीछे भगवा दल की मंशा कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के बीच सीधा संपर्क स्थापित कर लोकसभा चुनाव के नतीजों के कारणों पर मंथन करना थी, पर हुआ इसका उलटा. शीर्ष नेताओं में खींचतान, जमीनी कार्यकर्ताओं में असंतोष, अंतर्कलह जैसे कई मुद्दों पर प्रदेश कार्यसमिति की बैठक कन्नी काटती हुई दिखी. उत्साहहीन माहौल ने प्रदेश कार्यसमिति को महज औपचारिकता भरा आयोजन बना दिया.
बैठक में स्पष्ट हो गया कि सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नहीं है. इसकी शुरुआत प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के भाषण से शुरू हुई. उन्होंने कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई करते हुए कहा कि कार्यकर्ता हमारे लिए सबसे बढ़कर हैं. उसके मान-सम्मान से कोई समझौता नहीं हो सकता. प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मौजूद कार्यकर्ताओं से कहा, "जो आपका दर्द है, वही मेरा भी दर्द है. सरकार से बड़ा संगठन है, संगठन था और रहेगा. " मौर्य ने यह भी कहा कि 7 कालिदास मार्ग (लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य का आधिकारिक आवास) कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खुला है. बैठक में कार्यकर्ताओं के मन की बात कहने पर मौर्य को सबसे ज्यादा तालियां मिलीं.
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