इसे यूं समझिए कि 2003 तक भारत का ग्रहों से संबंधित विज्ञान कार्यक्रम नहीं था. लेकिन महज 21 साल बाद भारत ने सफलता के साथ चंद्रमा और मंगल पर कई रोवर और ऑर्बिटर भेजे या तैनात किए हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का सफर शानदार रहा है. अब वक्त है यह काकि अंतरिक्ष के क्षेत्र में सुपरपावर बनने के लिए भारत को क्या करने की जरूरत है और इसे कैसे हासिल किया जा सकता है. अंतरिक्ष में संभावनाओं की तलाश में अगले 20-30 साल का भविष्य क्या है? भविष्य में इसके नए मोर्चे किस तरह के होंगे ? यह ऐसा क्षेत्र है जहां भारत को अपनी रफ्तार बढ़ानी होगी और प्रासंगिक बने रहना होगा. यहां हम बता रहे हैं अंतरिक्ष खोज के ऐसे ही रोमांचक क्षेत्र.
चांद पर फिर इंसान के साथ चहलकदमी: अमेरिका चंद्रमा पर फिर से इंसान उतारने की तैयारी कर रहा है. पीछे-पीछे चीन भी है. आर्टेमिस प्रोग्राम अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री को 2026 में चंद्रमा पर पहुंचाएगा. अमेरिका पहले भी वहां जा ही चुका है लेकिन इस बार वह वहां की सिर्फ यात्रा ही नहीं करेगा बल्कि एक आधार भी बनाएगा जिसमें अंतरिक्ष यात्री साल में 365 दिन रह सकेंगे. इसे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तर्ज पर विभिन्न सरकारें समर्थन दे सकती हैं या फिर जेफ बेजोस के स्वामित्व वाले ब्लू ओरिजिन की तरह निजी तौर पर कोई चला सकता है.
मंगल पर जीवन की तलाश : हमें 1996 से ही बहुत सारे रोवर और ऑर्बिटर मिशनों से मंगल के बारे में काफी कुछ जानने को मिला है. हमें ध्रुवों पर और मंगल की सतह के नीचे पानी की मौजूदगी की जानक मिली है, हमें मंगल ग्रह के भूकंपों और वहां उठने वाले धूल के तूफानों का भी पता चला है संभव है भविष्य में पता चले कि मंगल पर अतीत में सूक्ष्म ही सही पर जीवन था. मंगल पर जीवन की तलाश अगले दो दशक तक जारी रहने की संभावना है, अंतरिक्ष के अन्वेषणों में यह अहम मोर्चा रहेगा.
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डीएपी की किल्लत का जिम्मेदार कौन?
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