अयोध्या के महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की उत्तर-पूर्वी सीमा से सटे और नवनिर्मित राम मंदिर से करीब पांच किलोमीटर दूर गांव धर्मपुर सहादत निवासी 60 वर्षीय रामहेत प्रजापति बहुत बेचैन हैं. हवाई अड्डे के विस्तारीकरण की जद में उनकी एक बीघा जमीन आ गई थी. दो साल पहले खेती योग्य जमीन के अधिग्रहण की एवज में रामहेत को 12.80 लाख रुपए मुआवजा मिला. यह मुआवजा धर्मपुर सहादत के दूसरे गरीब किसानों से ज्यादा ही था क्योंकि उनकी जमीन चकरोड के किनारे की थी. पर विडंबना यह है कि रामहेत की जमीन से महज दस फुट की दूरी पर मौजूद जनौरा बाहर नगरपालिका की एक बीघा जमीन का मुआवजा 74.80 लाख रुपए निर्धारित किया गया. एक ही एयरपोर्ट के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन के मुआवजे में इस विसंगति के पीछे अधिकारी जमीन की भिन्न प्रकृति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. रामहेत को मुआवजे के 12 लाख रुपए मिले लेकिन इतनी रकम में गांव से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर एक बिस्वा जमीन भी नहीं मिल पा रही. खेती कर अपने परिवार का किसी तरह पेट पालने वाले रामहेत अब मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे हैं.
रामहेत ही नहीं, ढाई हजार परिवारों वाले धर्मपुर सहादत गांव के करीब 2,000 से ज्यादा परिवारों के घर हवाई अड्डे के विस्तारीकरण में आकर जमींदोज हो चुके हैं. उन्हें सरकारी कीमत का चार गुना मुआवजा मिल गया है लेकिन उस पैसे से बाजार दर पर मामूली जमीन खरीदने की हैसियत भी नहीं रह गई है. अधिग्रहीत जमीन की एवज में किसानों को रहने के लिए सरकारी चरागाह, धूर, गड्ढे की जमीन आवंटित कर दी गई. इनकी नवैयत (लैंडयूज) न बदले जाने से बहुत-से किसानों को जमीन के कागजात नहीं मिल पाए हैं. इसी तरह धर्मपुर के आसपास के गंजा, सरेठी, कुशामाहा और जनौरा ग्रामसभा के हजारों किसान अनियमित मुआवजा मिलने से परेशान हैं. 'एक प्रोजेक्ट, एक मुआवजा' की नीति पर भेदभाव का आरोप लोकसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा था.
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