आजकल की जो आर्थिक नीतियां हैं, उनमें इतना ज्यादा वृद्धि पर जो जोर दिया जा रहा है, गांधीजी की हिंद स्वराज उस पर एक बहुत बड़ी आलोचना है। उन्होंने आधुनिकता के खिलाफ हिंद स्वराज लिखी थी। वैसे तो पूरी आधुनिक सभ्यता के खिलाफ उन्होंने इस किताब में बात की थी, लेकिन आधुनिकता के दो-तीन तत्वों पर उन्होंने खास जोर दिया था।
उदाहरण के लिए, आधुनिक तकनीकी। उनका खयाल था कि अगर हम लोग बिना सोचे-समझे अंधविश्वास के साथ आधुनिक तकनीक और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देंगे तो यह मनुष्यों के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है। उनका कहना था कि हर प्रौद्योगिकी के साथ एक एथिक्स भी होती है। वैसे ऊपर से देखने में तो हर तकनीक मूल्य-निरपेक्ष लगती है, उसका कोई नीतिगत आयाम नहीं दिखता और हमें लगता है कि हम जिस भी नीतिगत दिशा में चाहें उसे ले जा सकते हैं। ऐसा नहीं है। गांधीजी का मानना था कि तकनीक और प्रौद्योगिकी के भीतर एक नीतिगत आयाम निहित है और वह नकारात्मक है। उन्होंने तो पूरे रेल तंत्र की ही बहुत बड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि हम लोग तीन सौ किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से सफर करने में लगे हुए हैं, लेकिन मनुष्य की जो अपनी स्वाभाविक लय है, आंतरिक गति है, रेलगाड़ी उस गति को विकृत करती है। वे मानते थे कि कई चीजें हमें धीमी ही करनी चाहिए। आधुनिक तकनीकी गति को बढ़ाती है। उससे हमारी मानवता में विकार आता है।
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