इंटरनैट तकनीक में हो रहे तेजी से विकास के साथ अब किसी भी व्यवसाय के लिए यह आसान हो गया है कि वह डैस्कटौप या स्मार्टफोन पर एप्लिकेशन के माध्यम से यूजर्स तक पहुंच बनाए, साथ ही, यूजर्स के लिए भी आसान हो गया है कि वे आसानी से घर बैठे या राह चलते एक क्लिक से उन की सर्विसेज का फायदा उठाएं.
आज टूर में पेपर मैप्स, गाइडबुक्स और अन्य सामान के दिन चले गए हैं. इंटरनैट पर आज देश की अधिकतर जगह मौजूद हैं. इस के अलावा देश के लगभग हर हाथ में, खासकर युवाओं के पास, स्मार्टफोन जैसी सुविधा पहुंच गई है. भारत स्मार्टफोन यूज करने के मामले में दूसरे नंबर पर आता है.
पिछले साल डेलायट ने एक रिपोर्ट जारी की, उस के अनुसार भारत में साल 2021 तक कुल 1.2 अरब मोबाइल यूजर्स थे, जिन में से लगभग 75 करोड़ स्मार्टफोन यूजर्स थे. इस रिपोर्ट में साल 2026 तक एक अरब स्मार्टफोन यूजर्स हो जाने का अनुमान जताया गया.
आज स्मार्टफोन ट्रैवलर्स के लिए बहुत उपयोगी साधन बन गया है. वे अपनी ट्रिप को अच्छे ढंग से मैनेज कर सकते हैं और अपने अनुसार प्लान कर सकते हैं. यही कारण है कि भारत समेत दुनियाभर में ट्रैवल ऐप्स की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है.
स्टेटिस्टा की रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2023 तक गूगल प्ले स्टोर में 26 लाख 73 हजार से अधिक एप्लीकेशंस हैं. इतनी सारी एप्लीकेशंस हैं जिन से लोग किसी न किसी तरह से सर्विसेस और सुविधाएं ले रहे हैं. जाहिर है इन में कइयों ऐसी टूर एंड ट्रैवल से संबंधित एप्लीकेशंस भी हैं जिन से एक छत के नीचे रह कर ही पूरे टूर का प्लान किया जा सकता है.
मोबाइल ऐप की अच्छी बात यह है कि अगर कोई पर्यटक ऐप से जुड़ता है तो वह एक ही जगह पर सारा सैटअप हासिल कर सकता है. इस में जिस जगह जाना है उस का चयन, उस जगह पहुंचने के लिए टिकट बुक करना, पौकेटफ्रैंडली टैरिफ, होटल, लौज, होस्टल की बुकिंग, जहां जाना है वहां के लिए कैब बुक करना, घूमने के लिए जगहों की खोज, मौसम की जानकारी लेना आदि ऐप्स के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है.
هذه القصة مأخوذة من طبعة April Second 2023 من Sarita.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.
शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला भड़ास या साजिश
कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
2004 में कांग्रेस नेतृत्व वाली मिलीजुली यूपीए सरकार केंद्र की सत्ता में आई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ संसद से सामाजिक सुधार के कई कानून पारित कराए, जिन का सीधा असर आम जनता पर पड़ा. बेलगाम करप्शन के आरोप यूपीए को 2014 के चुनाव में बुरी तरह ले डूबे.
अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.