हम बच्चों को अपने जीवन का मोहरा बना लेते हैं. लगता है कि हर कोई हमारे बच्चे की तारीफ करे. पेरेंट्स खुद दूसरों से कहते हैं कि मेरी तरफ देखो, क्या नायाब चीज है मेरा बच्चा, मेरा बच्चा आईपीएल में गया है, स्कूल की तरफ से बाहर गया है, वह स्विमिंग चैंपियन बन गया है. यानी आज पेरैंट्स चाहते हैं कि उन का बच्चा पढ़ाई के साथसाथ ड्राइंग, पेंटिंग, डांस, सिंगिंग, क्राफ्ट, स्पोट्र्स आदि में भी सब से आगे रहे. इस सब के चलते मातापिता पेरैंटल बर्नआउट की गिरफ्त में आ जाते हैं.
यह आप को उलटवार करता है. बच्चे के बारे में आप सोसाइटी में इतनी बातें करते हैं कि एक दिन वह बच्चा आप के गले की फांस बन जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो वह गले की ऐसी हड्डी बन जाता है जो न निगलते बने न उगलते. दरअसल बच्चे की तारीफ इतनी ज्यादा कर दी जाती है सोसाइटी में कि उसे मैनेज करना एक चैलेंज बन जाता है.
बच्चा है कि आप की अब एक नहीं सुनता, आप पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है. इसलिए बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो. उस को खादपानी दो लेकिन अपने को उस पर न्योछावर मत करो. बच्चों के लिए उतना करो जितना जेब इजाजत करे. बच्चों के लिए खुद को पूरी तरह न थकाएं. अगर आप भी अपने बच्चों की देखभाल और पालनपोषण के दौरान थकान व तनाव का अनुभव करते हैं, अपने बच्चों की जिम्मेदारियों व अपेक्षाओं के बीच संतुलन नहीं बना पाते हैं और आप को पर्याप्त आराम व सपोर्ट नहीं मिल पाता है तो समझिए की कमी खुद में ही है. आइए जानें इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें.
बच्चों को न कहना भी सीखे मां
هذه القصة مأخوذة من طبعة December Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة December Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.