भारत में छोटेबड़े सभी शहरों और अब तो गांवोंकसबों में भी स्कूल की पढ़ाई के बाद बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास दोतीन घंटे बिताना आम है. हर मातापिता अपने बच्चे को क्लास में अव्वल देखना चाहते हैं. उन की महत्त्वाकांक्षाओं और इच्छाओं का नाजायज दबाव बच्चों के ऊपर बढ़ता जा रहा है.
दूसरी तरफ टीचर्स, चाहे सरकारी स्कूल के हों या प्राइवेट स्कूल के, को अतिरिक्त पैसे की हवस ने इतना लालची बना दिया है कि वे स्वयं बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाते हैं, वरना क्लास में फेल कर देने की धमकी देते हैं. इस तरह वे बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करते रहते हैं. प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने में पैसा खूब है. जितनी एक बच्चे की महीने की स्कूल फीस होती है, लगभग उतना ही पैसा ट्यूशन पढ़ाने वाला टीचर ले लेता है. विषय भी सारे नहीं पढ़ाता. अधिकतर साइंस, गणित और इंग्लिश के ट्यूशन के लिए ही इन के पास बच्चे जाते हैं.
एक पीढ़ी पहले वाली जमात की बात करें तो उस वक्त भी 8वीं या 9वीं कक्षा के बाद ही ट्यूशन की जरूरत पड़ती थी, वह भी उन विषयों में जिन में बच्चा कुछ कमजोर होता था ताकि 10वीं बोर्ड की परीक्षा में पास हो जाए. मगर वर्तमान पीढ़ी तो पहली और दूसरी कक्षा से ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगी है. नन्हेनन्हे बच्चे स्कूल में लंबा समय गुजारने के बाद दोतीन घंटे ट्यूटर के पास भी बिताते हैं. नतीजा, बच्चों के पास खेलनेकूदने का समय ही नहीं बचा है. पूरे वक्त पढ़ाई का बोझ उन पर हावी रहता है.
रोहिणी दिल्ली के युवाशक्ति मौडल स्कूल की वाइस प्रिंसिपल दिव्या वत्स इस मामले में कहती हैं, "जहां तक प्राइमरी लैवल की बात है तो आजकल स्कूलों में बच्चों के लिए पढ़ाई के अलावा भी ढेर सारी ऐसी गतिविधियां कराई जाती हैं, जिस से उन का समग्र विकास हो सके. ऐसी गतिविधियों से उन्हें खेलखेल में सीखने का मौका मिलता है और स्कूल में ही पारिवारिक माहौल का भी एहसास होता है.
"मेरा यह मानना है कि यदि कोई बच्चा क्लास में अपने टीचर को ध्यान से सुनता है और घर पर पढ़ाई की अच्छे से रिविजन करता है तो उसे स्कूल के बाद निजी ट्यूशन क्लास में भेजने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.
هذه القصة مأخوذة من طبعة May Second 2023 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة May Second 2023 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.