फिल्म 'रौकी और रानी की प्रेम कहानी' को देख कर लगा मानो फिल्मों का पुराना दौर लौट आया है. निर्देशक करन जौहर ने 7-8 साल बाद इस फिल्म के जरिए फिल्मी दुनिया में बतौर निर्देशक वापसी की है. करन जौहर ने 'कभी खुशी कभी गम' जैसी हिट फिल्म बनाई थी पर यह फिल्म उस जैसी नहीं है. लेकिन इस में खुशी, हंसीमजाक, परिवार, रिश्ते, कौमेडी और मसालों का परफैक्ट मिश्रण जरूर है.
वैसे तो फिल्म लवस्टोरी है लेकिन यह आम मुंबइया फिल्मों वाली लवस्टोरी नहीं है. करन जौहर ने फिल्म में सारे लटकेझटके डालने की कोशिश की है ताकि दर्शकों का मनोरंजन होता रहे. युवाओं को यह फिल्म अच्छी लग सकती है. सीनियर दर्शकों को यह फिल्म ढेर सारे पुराने गानों के कारवां से अपने बीते सुरीले दौर में ले जाती है.
धर्मेंद्र का रोल शानदार है. उस ने अपने भुल्लकड़पन में बीते दौर के गानों को गुनगुना कर समां बांध दिया है. दर्शकों को बांधे रखने के लिए निर्देशक ने 2 परिवारों की कल्पना कर मिलना, बिछुड़ना, रूठना, मनाना, मानअपमान, गलतसही सबकुछ दिखाया है. उस ने बताया है कि शादी सिर्फ 2 लोगों की ही नहीं होती, 2 परिवारों का भी मिलन होता है. अगर दोनों परिवार एकदूसरे से उलट हों तो बच्चों के मिलने की राह टेढ़ी और अंत ऊबड़खाबड़ हो जाता है.
बॉलीवुड में रणवीर सिंह को सप ऐक्टर नहीं माना जाता रणवीर की हालिया फिल्में 'सर्कस' और 'जयेशभाई जोरदार' बुरी तरह पिट गईं. इस से पहले दीपिका पादुकोण के साथ 'गोलियों की रासलीला रामलीला' अच्छी चली लेकिन उस फिल्म की सफलता में दीपिका पादुकोण का बड़ा हाथ था, जिस के साथ रणवीर सिंह ने बाद में शादी कर ली थी. इस फिल्म में रणवीर सिंह ने दर्शकों को निराश नहीं किया है. उस के साथ आलिया भट्ट ने भी महफिल लूट ली है. दोनों की कैमिस्ट्री बढ़िया है.
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शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला भड़ास या साजिश
कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
2004 में कांग्रेस नेतृत्व वाली मिलीजुली यूपीए सरकार केंद्र की सत्ता में आई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ संसद से सामाजिक सुधार के कई कानून पारित कराए, जिन का सीधा असर आम जनता पर पड़ा. बेलगाम करप्शन के आरोप यूपीए को 2014 के चुनाव में बुरी तरह ले डूबे.
अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.
कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.