23 अगस्त, 2023 की शाम 6 बज कर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 ने जब सफलतापूर्वक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया तो गर्व के इन पलों को जीने का रोमांच ही कुछ और था, जिस को शब्दों में बांध पाना मुश्किल है. इस उपलब्धि पर पूरी दुनिया ने भारत को बधाई महज इसलिए नहीं दी कि उस ने बहुत कम खर्च में इसे अंजाम देने में कामयाबी हासिल कर ली थी बल्कि इसलिए भी दी कि भारत ने अपनी सांपसपेरों वाली इमेज को तोड़ते यह जता दिया कि स्पेस पावर में अब वह किसी से उन्नीस नहीं.
ऐसा रोजरोज और हर कभी नहीं होता कि आप अपने देश के वैज्ञानिकों पर गर्व करें और सीना तान कर कह सकें कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले में अब हम भी दौड़ में हैं और कोशिशें इसी तरह जारी रहीं तो आदित्य एल 1 के जरिए हमारा सूर्य पर जाने व उस के भी रहस्य सुलझा लेने का दावा एक दिन सच होगा. कोई हमें कमतर न आंके.
वैज्ञानिक सफलता पर धूर्तपना
लेकिन जब हम ही खुद को कमतर आंकने लगें तो ? निश्चित रूप से यह सदियों से हमारे दिलोदिमाग में पसरी एक विकट की हीनभावना है जिस से उबरने का एक अच्छा मौका हम ने खो दिया है. जल्द ही हमारे राजनेताओं सहित खुद इसरो चीफ ने यह जता दिया कि हमें हमारी पुरानी इमेज से छुटकारा नहीं चाहिए उस के बगैर हम खुद को असहज महसूस करने लगते हैं। और हमें लगता है कि हम आगे नहीं बढ़े, बल्कि पिछड़ गए हैं. किसी ने हम से हमारी पहचान छीन ली है. यह हीनभावना दरअसल एक तरह की चालाकी भी है जिस का मकसद कुछ और भी है.
मकसद यह है कि हम आधुनिक होना ही नहीं चाहते क्योंकि धर्म और संस्कृति के लिए आधुनिकता एक बहुत बड़ा खतरा है. आधुनिकता के माने रहनसहन तक सिमटे नहीं हैं और न ही सुविधाभोगी होना आधुनिकता है. बहुत बड़े फ्रेम में देखें तो आधुनिकता का दोटूक मतलब है मानव जाति को अज्ञानता और तर्कहीनता से मुक्त करने की कोशिश जो पुरानी और पुरातनी सोच का खंडन करते भविष्य में ले जाती है.
هذه القصة مأخوذة من طبعة September Second 2023 من Sarita.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.
शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार
सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
एमआरपी का भ्रमजाल
एमआरपी तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.
कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला भड़ास या साजिश
कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
2004 में कांग्रेस नेतृत्व वाली मिलीजुली यूपीए सरकार केंद्र की सत्ता में आई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ संसद से सामाजिक सुधार के कई कानून पारित कराए, जिन का सीधा असर आम जनता पर पड़ा. बेलगाम करप्शन के आरोप यूपीए को 2014 के चुनाव में बुरी तरह ले डूबे.
अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.