छोटे शहरों, महानगरों और गांवों तक में निजी वाहन अब लोगों की जरूरत बन गए हैं. भले मैट्रो, बस व ट्रेन से लोग रोजमर्रा का सफर करते हों पर बाइक से ले कर कार लगभग हर दूसरे घरपरिवार में मौजूद है.
वाहन व्यक्ति की संपत्ति का हिस्सा है. वाहन ने हमारी जिंदगी तेज की है. इस ने सुविधा और सहूलियत दी है तो हर व्यक्ति चाहता है कि उस के पास अपना खुद का वाहन हो चाहे वह सैकंडहैंड ही क्यों न हो.
कई मौकों पर वाहन खरीदनाबेचना पड़ जाता है. ऐसे में वाहन बेचते व खरीदते लेखाजोखा से जुड़े काम होते हैं. यह काम सरकार के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के माध्यम से होते हैं. किसी भी वाहन को बेचने पर उस के मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर वाहन को ट्रांसफर करवाया जाता है. ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो राज्य सरकार का राजस्व होता है.
कई लोग इसे झंझट वाला काम समझते हैं और आपसी विश्वास में इस ट्रांसफर वाली प्रक्रिया से बचने की कोशिश करते हैं. जैसे वे स्टांप के माध्यम से अपने परिचित या जानपहचान वाले को अपना वाहन बेच देते हैं. कई बार तो बिना स्टांप के ही ऐसे ही बेच देते हैं. इस में सरकार को राजस्व का नुकसान तो होता ही है, उस व्यक्ति को भी नुकसान होता है जिस के नाम पर वाहन रजिस्टर्ड होता है.
कानून कहता है जिस डेट को वाहन को बेचा गया है उस के 14 दिनों के भीतर खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवाना होता है. यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 50 के अंतर्गत है. हां, यदि खरीदने व बेचने वाले का राज्य अलगअलग है तो यह अवधि 45 दिनों की होती है पर इन दिनों के भीतर वाहन रजिस्टर्ड करवा लेना जरूरी होता है. इसे ही वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है.
क्या होता है ट्रांसफर
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