बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जिन्होंने जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक कर 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में जनता की थोड़ी दिलचस्पी पैदा कर दी, वरना तो चुनाव उबाऊ हुए जा रहे थे.
जातिगत जनगणना वोटर पर गहरे तक असर डाल रही है, भाजपा पर सवर्णों की पार्टी होने का ठप्पा और गहराना इन राज्यों में उसे नुकसान पहुंचा रही है तो जाहिर है.
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने ये तीनों ही राज्य भाजपा से छीन लिए थे लेकिन इस के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने फिर बढ़त बना ली थी.
इस बार फिर भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे कर चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी बनाने का फैसला लिया है पर वह कामयाब नहीं हो पा रही है क्योंकि हर कोई जानता है कि चुना मुख्यमंत्री जाना है, मोदी की यात्राओं को खास रिस्पौंस नहीं मिला. वोटर्स को यह एहसास है कि नरेंद्र मोदी तो चुनावी रैलियों के बाद लोकसभा चुनाव में व्यस्त हो जाएंगे तो वे क्यों धरमकरम, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर वोट डालें जबकि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ले कर खासी नाराजगी है जिस से खुद भाजपा चुनावप्रचार के दौरान ही लड़खड़ाती नजर आ रही है.
अपनी दूसरी पंक्ति के नेताओं और मुख्यमंत्री पद के दावेदारों पर दांव न खेलने की नीति से भगवा की पैदल सेना में हताशा है नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता दोनों में भी गिरावट आई है. भाषणों की एक सी स्टाइल और रटीरटाई बातों से लोग ऊबने लगे हैं क्योंकि दुनिया के सब से बड़े लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने के नाते जनता अपने मतलब की बात सुनना चाहती है, दूसरों की खिंचाई नहीं.
दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने प्रादेशिक क्षत्रपों पर ही भरोसा जता कर बुद्धिमानी का काम किया है कि जनता चाहे तो मौजूदा सरकारों और मुख्यमंत्री के नाम पर वोट दे और चाहे तो गांधी परिवार के नाम पर वोट दे दे. आइए देखें किस राज्य में चुनावी माहौल और तसवीर कैसी है.
هذه القصة مأخوذة من طبعة October Second 2023 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة October Second 2023 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
कंगाली और गृहयुद्ध के मुहाने पर बौलीवुड
बौलीवुड के हालात अब बदतर होते जा रहे हैं. फिल्में पूरी तरह से कौर्पोरेट के हाथों में हैं जहां स्क्रिप्ट, कलाकार, लेखक व दर्शक गौण हो गए हैं और मार्केट पहले स्थान पर है. यह कहना शायद गलत न होगा कि अब बौलीवुड कंगाली और गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है.
बीमार व्यक्ति से मिलने जाएं तो कैसा बरताव करें
अकसर अपने बीमार परिजनों से मिलने जाते समय लोग ऐसी हरकतें कर या बातें कह देते हैं जिस से सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी हो जाती है और माहौल खराब हो जाता है. जानिए ऐसे मौके पर सही बरताव करने का तरीका.
उतरन
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें
ब्रेकअप के बाद सब का अपना अलग हीलिंग प्रोसैस होता है लेकिन खुद से प्यार करना और समय देना सब से जरूरी होता है.
इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्ट करना ठीक नहीं
जिन परिवारों में इकलौता बच्चा होता है वे बच्चे की सुरक्षा के प्रति बहुत सजग रहते हैं. उसे हर वक्त अपनी निगरानी में रखते हैं. लेकिन बच्चे की अत्यधिक सुरक्षा उस के भविष्य और कैरियर को तबाह कर सकती है.
मेले मामा चाचू बूआ की शादी में जलूल आना
शादी कार्ड में जिन के द्वारा लिखवाया गया होता है कि 'मेले मामा/चाचू की शादी में जलूल आना' उन प्यारेप्यारे बच्चों के लिए सब से बड़ी सजा हो जाती है कि वे देररात तक जाग सकते नहीं.
गलत हैं नायडू स्टालिन औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं
महिलाएं बड़ी बड़ी बाधाएं पार कर उस मुकाम पर पहुंची हैं जहां उन का अपना अलग अस्तित्व, पहचान और स्वाभिमान वगैरह होते हैं. ऐसा आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार के बनाए कानूनों के अलावा शिक्षा और जागरूकता के चलते संभव हो पाया. महिलाओं ने अब इस बात से साफ इनकार कर दिया कि वे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बने रहना चाहती हैं.
सांई बाबा विवाद दानदक्षिणा का चक्कर
वाराणसी के हिंदू मंदिरों से सांईं बाबा की मूर्तियों को हटाने की सनातनी मुहिम फुस हो कर रह गई है तो इस की अहम वजह यह है कि हिंदू ही इस मसले पर दोफाड़ हैं. लेकिन इस से भी बड़ी वजह पंडेपुजारियों का इस में ज्यादा दिलचस्पी न लेना रही क्योंकि उन की दक्षिणा मारी जा रही थी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा भाग-5
1990 के बाद का दौर भारत में भारी उथलपुथल भरा रहा. एक तरफ नई आर्थिक नीतियों ने कौर्पोरेट को नई जान दी, दूसरी तरफ धर्म का बोलबाला अपनी ऊंचाइयों पर था. धार्मिक और आर्थिक इन बदलावों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया, जिस का असर संसद पर भी पड़ा.
न्याय की मूरत सूरत बदली क्या सीरत भी बदलेगी
भावनात्मक तौर पर 'न्याय की देवी' के भाव बदलने की सीजेआई की कोशिश अच्छी है, लेकिन व्यवहार में इस देश में निष्पक्ष और त्वरित न्याय मिलने व कानून के प्रभावी अनुपालन की कहानी बहुत आश्वस्त करने वाली नहीं है.