गैसचैंबर के अप्रिय खिताब से नवाजी जाने लगी देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का खतरनाक स्तर को पार कर जाना अब आएदिन की बात हो गई है जिस पर कुछ दिनों के लिए होहल्ला मचता है. तरहतरह की एडवाइजरी जारी होती हैं, फिर बात कुछ दिनों के लिए आईगई हो जाती है. अक्तूबर के महीने में भी फिर ऐसा ही कुछ हुआ और कई और बातें निकल कर सामने आईं लेकिन उन में से अधिकतर दिल्ली तक ही में सिमट कर रह गईं.
मसलन यह कि दिल्ली में तेजी से फेफड़ों के मरीजों की तादाद में इजाफा हो रहा है. कुछ इलाकों में तो ब्रोन्कियल अस्थमा और सीओपीडी यानी क्रौनिक औब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसी घातक बीमारियां बहुत तेजी से फैल रही हैं.
ब्रोन्कियल अस्थमा में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है क्योंकि उसे सांस लेने में ज्यादा जोर लगाना पड़ता है. इस बीमारी में सांस लेने में घरघराहट और सीने में भी तकलीफ होने लगती है. सीओपीडी में भी कमोबेश यही लक्षण दिखाई देते हैं जिस में मरीज औक्सीजन खींच तो लेता है लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड आसानी से बाहर नहीं छोड़ पाता जिस से उस का दम घुटने लगता है. कई बार तो इस से मौत तक हो जाती है.
नैशनल इंस्टिट्यूट फौर इंप्लीमेंटेशन रिसर्च औन नौन कम्युनिकेबल डिजीज, जोधपुर और आईआईटी, दिल्ली सहित कोई 6 एजेंसियों ने इन बीमारियों पर रिसर्च की तो पता यह भी चला कि घर की हवा की गुणवत्ता भी लंग्स की बीमारियों की जिम्मेदार है. घरों में धूल की मौजूदगी, खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाला ईंधन और धुआं, सामान पर जमा होता ठोस और जैविक वेस्ट का डिस्पोजल और कीड़ेमकोड़े भी फेफड़ों के खराब होने में अहम रोल निभाते हैं.
बाहरी प्रदूषण को नियंत्रित करने की सरकारी और गैरसरकारी कोशिशें कब और कितनी कामयाब होंगी, यह कोई नहीं कह सकता, हां, बाहरी प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगाने जैसी कुछ सावधानियां जरूर रखी जा सकती हैं पर घर के अंदर के सामान से फेफड़े कब और कैसे खराब होने लगते हैं, इस बारे में आम लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती हैं क्योंकि हल्ला बाहरी प्रदूषण को ले कर मचता है जबकि जरूरत घर के अंदर ध्यान देने की ज्यादा है, क्योंकि हम सभी ज्यादा वक्त वहीं बिताते हैं. जाहिर है लगातार घर के सामान के संपर्क में रहते हैं.
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