टीवी की दुनिया में रिऐलिटी शो समय बिताने का एक अच्छा औप्शन है एक रिऐलिटी शो के खत्म होने के बाद दूसरा शो कुछ दिनों बाद ही शुरू हो जाता है. ये शोज बहुत ग्लैमरस बनाए जाते हैं, जिन में सैलिब्रिटीज के महंगे कौस्टयूम्स से ले कर साजसज्जा सभी में ग्लैमर का तड़का लगाया जाता है, जिसे दर्शक काफी पसंद करते हैं. इन सबकुछ में बनावटी प्यार, नोंकझोंक, रोनाधोना आदि सब होता है, जिसे देखने में रियल तो लगता है पर हकीकत में ऐसा होता नहीं है. रिऐलिटी शोज के नाम पर यहां सब नकली होता है, केवल दर्शकों की वोटिंग रियल होती है.
भुगतना पड़ता है खमियाजा
यहां ताली बजाने से ले कर शोरशराबा और हंसने तक सब बनावटी और क्रिएट किए जाते हैं. लेकिन एक रिऐलिटी शो की टीआरपी हमेशा अधिक होती है. फलस्वरूप, निर्माता इन शोज को बनाने के लिए आगे आते हैं. हालांकि कई बार शो की टीआरपी कम होने पर उसे बंद भी करना पड़ता है. इन सैलिब्रिटीज को कौन्ट्रैक्ट के आधार पर पूरे पैसे देने पड़ते हैं और इस का खमियाजा चैनल को भुगतना पड़ता है.
टीआरपी है जरूरी
इस का असर इस बार रिऐलिटी शो 'बिग बॉस 17' पर पड़ा, जिस के एंकर अभिनेता सलमान खान रहे जो करोड़ों रुपए सालों से इस शो के जरिए कमाते हैं. इस बार शो को एक्सटैंशन नहीं मिला, क्योंकि मुश्किल से टीआरपी इस शो को मिल रही थी, इसलिए शो को बंद करना पड़ा.
इस बारे में 'ऐज यू लाइक इट प्रोडक्शंस' के निर्मातानिर्देशक अनुज कपूर कहते हैं कि किसी भी रिऐलिटी शो में सैलिब्रिटी को लेने का अर्थ उस शो का अधिक पौपुलर दर्शकों के बीच होना होता है. ऐसे में चैनल्स को विज्ञापन अधिक मिलते हैं, क्योंकि दर्शक उन्हें देखते हैं. टीआरपी हाई होती हैं. विज्ञापनों से मिले पैसे से सैलिब्रिटीज की फीस का भुगतान किया जाता है.
इस में भी सैलिब्रिटीज के साथ कौन्ट्रैक्ट साइन होता है, जिस में उन्हें शो की पूरी फीस देने की बात होती है. कई बार शो अच्छा न चलने पर टीआरपी में कमी आ जाती है. विज्ञापनदाता अपना हाथ खींच लेते हैं लेकिन चैनल्स को सैलिब्रिटीज की फीस की पूरी रकम देनी पड़ती है, जिस से उन्हें लौस होता है.
هذه القصة مأخوذة من طبعة March Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة March Second 2024 من Sarita.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
पुराणों में भी है बैड न्यूज
हाल ही में फिल्म 'बैड न्यूज' प्रदर्शित हुई, जो मैडिकल कंडीशन हेटरोपैटरनल सुपरफेकंडेशन पर आधारित थी. इस में एक महिला के एक से अधिक से शारीरिक संबंध दिखाने को हिंदू संस्कृति पर हमला कहते कुछ भगवाधारियों ने फिल्म का विरोध किया पर इस तरह के मामले पौराणिक ग्रंथों में कूटकूट कर भरे हुए हैं.
काम के साथ सेहत भी
काम करने के दौरान लोग अकसर अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखते, जिस से हैल्थ इश्यूज पैदा हो जाते हैं. जानिए एक्सपर्ट से क्यों है यह खतरनाक?
प्यार का बंधन टूटने से बचाना सीखें
आप ही सोचिए क्या पेरेंट्स बच्चों से न बनने पर उन से रिश्ता तोड़ लेते हैं? नहीं न? बच्चों से वे अपना रिश्ता कायम रखते हैं न, तो फिर वे अपने वैवाहिक रिश्ते को बचाने की कोशिश क्यों नहीं करते? बच्चे मातापिता को डाइवोर्स नहीं दे सकते तो पतिपत्नी एकदूसरे के साथ कैसे नहीं निभा सकते, यह सोचने की जरूरत है.
तलाक अदालती फैसले एहसान क्यों हक क्यों नहीं
शादी कर के पछताने वाले हजारोंलाखों लोग मिल जाएंगे, लेकिन तलाक ले कर पछताने वाले न के बराबर मिलेंगे क्योंकि यह एक घुटन भरी व नारकीय जिंदगी से आजादी देता है. लेकिन जब सालोंसाल तलाक के लिए अदालत के चक्कर काटने पड़ें तो दूसरी शादी कर लेने में हिचक क्यों?
शिल्पशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र?
शिल्पशास्त्र में किसी इमारत की उम्र जानने की ऐसी मनगढ़ंत और गलत व्याख्या की गई है कि पढ़ कर कोई भी अपना सिर पीट ले.
रेप - राजनीति ज्यादा पीडिता की चिंता कम
देश में रेप के मामले बढ़ रहे हैं. सजा तक कम ही मामले पहुंचते हैं. इन में राजनीति ज्यादा होती है. पीड़िता के साथ कोई नहीं होता.
सिध सिरी जोग लिखी कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
धीरेधीरे मैं भी मौजूदा एडवांस दुनिया का हिस्सा बन गई और उस पुरानी दुनिया से इतनी दूर पहुंच गई कि प्रांशु को लिखवाते समय कितने ही वाक्य बारबार लिखनेमिटाने पड़े पर फिर भी वैसा...
चुनाव परिणाम के बाद इंडिया ब्लौक
16 मई, 2024 को चुनावप्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में दहाड़ने की कोशिश करते हुए कहा था कि 4 जून को इंडी गठबंधन टूट कर बिखर जाएगा और विपक्ष बलि का बकरा खोजेगा, चुनाव के बाद ये लोग गरमी की छुट्टियों पर विदेश चले जाएंगे, यहां सिर्फ हम और देशवासी रह जाएंगे. लेकिन 4 जून के बाद कुछ और हो रहा है.
वक्फ की जमीन पर सरकार की नजर
भाजपा की आंखें वक्फ की संपत्तियों पर गड़ी हैं. इस मामले को उछाल कर जहां वह एक तरफ हिंदू वोटरों को यह दिखाने की कोशिश करेगी कि देखो मुसलमानों के पास देश की कितनी जमीन है, वहीं वक्फ बोर्ड में घुसपैठ कर के वह उसे अपने नियंत्रण में लेने की फिराक में है.
1947 के बाद कानूनों से रेंगतीं सामाजिक बदलाव की हवाएं
15 अगस्त, 1947 को भारत को जो आजादी मिली वह सिर्फ गोरे अंगरेजों के शासन से थी. असल में आम लोगों, खासतौर पर दलितों व ऊंची जातियों की औरतों, को जो स्वतंत्रता मिली जिस के कारण सैकड़ों समाज सुधार हुए वह उस संविधान और उस के अंतर्गत 70 वर्षों में बने कानूनों से मिली जिन का जिक्र कम होता है जबकि वे हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं. नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी का सपना इस आजादी का नहीं, बल्कि देश को पौराणिक हिंदू राष्ट्र बनाने का रहा है. लेखों की श्रृंखला में स्पष्ट किया जाएगा कि कैसे इन कानूनों ने कट्टर समाज पर प्रहार किया हालांकि ये समाज सुधार अब धीमे हो गए हैं या कहिए कि रुक से गए हैं.