15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट मैं चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ की अगुआई में 5 जजों की बैंच ने इलैक्टोरल बौंड स्कीम को असंवैधानिक करार दे कर उसे रद्द कर दिया था. कोर्ट ने सवाल उठाया था कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को जनता से छिपाने की आवश्यकता क्यों है? इन पैसों की जानकारी पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं होनी चाहिए, यह जनता की वैचारिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है. इसी के साथ कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई), जो कि इलैक्टोरल बौंड बेचने वाला देश का अकेला अधिकृत बैंक है, को निर्देश दिया था कि वह 12 अप्रैल, 2019 से ले कर अब तक खरीदे गए समस्त इलैक्टोरल बौंड्स की जानकारी चुनाव आयोग को 6 मार्च, 2024 तक उपलब्ध कराए ताकि चुनाव आयोग उसे अपनी वैबसाइट पर अपलोड कर के सार्वजनिक कर सके.
मोदी सरकार के दबाव में एसबीआई इलैक्टोरल बौंड्स की जानकारी शेयर करने में हीलाहवाली करता रहा. 11 मार्च को जब कोर्ट की फटकार पड़ी तो देश के जानेमाने वकील हरीश साल्वे को कोर्ट में खड़ा कर के तमाम बहाने बनाते हुए एसबीआई ने जून तक का समय मांगा. इतना लंबा समय इसलिए ताकि तब तक लोकसभा चुनाव निबट जाएं और प्रधानमंत्री मोदी, जो देश की जनता से यह कहते आए हैं कि 'न खाऊंगा न खाने दूंगा', की पोलपट्टी चुनाव से पहले न खुलने पाए.
एसबीआई की हरकत से सुप्रीम कोर्ट इतना नाराज हुआ कि उस ने जबरदस्त फटकार लगाते हुए 24 घंटे के अंदर समस्त जानकारी कोर्ट के पटल पर रखने के आदेश के साथ एसबीआई के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की बात भी कह दी. कोर्ट के कड़े रुख से सब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई और दूसरे दिन इलैक्टोरल बौंड्स की जानकारी कोर्ट में आ गई.
उस जानकारी से इतना खुलासा हुआ कि अब तक जितने इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे गए हैं उन में से 57 फीसदी हिस्सा भारतीय जनता पार्टी को गया है और माना जा रहा है कि मार्च 2018 से अप्रैल 2019 तक जारी हुए इलैक्टोरल बौंड में से 95 फीसदी धन भाजपा की झोली में गया है.
अब तक की जानकारी के अनुसार भाजपा को इलैक्टोरल बौंड्स से कुल 6,986.5 करोड़ रुपए यानी करीब 7 हजार करोड़ रुपए चंदा मिला.
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