जबरन युनीलेटरल फैसले लेने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन के फैसलों से पूरा देश कराह रहा है, को अब जनता ने इतना कमजोर कर दिया कि अब बिना अपने सहयोगियों के मशवरे के वे अपनी मनमरजी से फैसला नहीं ले सकते. उन के नेतृत्व में गठित नई पंगु सरकार के सामने अगले 5 वर्ष सड़क से ले कर संसद तक में कई सवाल गूंजेंगे जिन का जवाब देना अब उन की मजबूरी होगी. इस का पहला धमाका नीट में गड़बड़ी के रूप में सामने आया है जो देश का बड़ा मुद्दा बन गया है और 24 लाख छात्रों के अलावा उन के परिवार व देश के युवाओं से सीधे जुड़ गया है. इस के साथ नैशनल टैस्टिंग एजेंसी द्वारा कराए जाने वाली इस परीक्षा के परिणामों के कारण 2 करोड़ युवाओं का वर्तमान और भविष्य अधर में लटक गया है.
संसद में सांसदों के शपथग्रहण के पहले ही दिन विपक्ष ने संविधान की प्रति अपने हाथों में ले कर जता दिया कि अगले 5 साल सरकार के लिए आसान नहीं होने जा रहे. 'एक देश एक परीक्षा', 'एक देश एक चुनाव', 'एक देश एक टैक्स' जैसी तानाशाही इस विविधताभरे देश में नहीं चलने वाले. जिस तरह ईवीएम पर सवाल उठे, उसी तरह से नीट की ओएमआर शीट भी सवालों के घेरे में है. नीट का मामला शांत हुआ भी नहीं था कि यूजीसी नैट में गड़बड़ी का मामला भी सामने आ गया है. ईवीएम पर तो सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी शंका बरकरार है पर नीट कराने वाली नैशनल टैस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए कहती है, "परीक्षा की ओएमआर शीट में छेड़छाड़ संभव नहीं है.'
नीट में गड़बड़ी की दूसरी राहें भी हैं. ग्रेस मार्क्स और पेपर लीक सवालों के घेरे में हैं. नीट की तरह ही इंजीनियरिंग में "'जेईई" और एकैडमिक परीक्षा वाला नैट और विश्वविद्यालय में दाखिल होने के लिए "क्यूट" परीक्षाएं भी एनटीए आयोजित कराती है. यह भी "एक देश एक परीक्षा' जैसी है और नरेंद्र मोदी की "एक देश एक कर्म,' 'एक देश एक शासक', 'एक देश एक भाषा' जैसे नारों की तर्ज पर आधारित है.
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यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.