10 जुलाई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा स्त्री को गुजारा भत्ता देने के संबंध में फैसला सुनाते हुए उस के पति को प्रतिमाह 20 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. मामला चूंकि मुसलिम धर्म से जुड़ा था, लिहाजा अखबारों और टीवी चैनलों पर खूब चला. भारतीय जनता पार्टी और उस के गोदी मीडिया ने तो दो कदम आगे बढ़ कर इसे तीन तलाक के मुद्दे के बाद मुसलिम महिलाओं की दूसरी जीत करार दिया. तमाम मुसलिम महिलाओं की बाइट टीवी पर दिखाई जाने लगी. जबकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत किसी भी आश्रित के लिए गुजारा भत्ता पाने का यह कोई पहला मामला नहीं था. देशभर की अदालतों में हर दिन ऐसे सैकड़ों मामलों की सुनवाई होती है और आश्रितों के हक में अदालतों द्वारा ऐसे फैसले दिए जाते हैं पर चूंकि यह मुसलिम समाज से जुड़ा मामला था इसलिए होहल्ला अधिक हुआ.
पत्नी, बच्चों और मातापिता के भरणपोषण के लिए आदेश देने से जुड़ी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 साल 1973 में बनी और 1 अप्रैल, 1974 को लागू हुई. यह धारा खासतौर पर हिंदू महिलाओं की दुर्दशा को देखते हुए लागू की गई थी. पति द्वारा त्याग दिए जाने पर, पति की मृत्यु हो जाने पर, बच्चों द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर अधिकांश हिंदू औरतें नारकीय जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाती थीं. उन्हें उस नारकीय जीवन से निकाल कर सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार मिले, इस सोच के तहत यह कानून बना.
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