पंजाब में शिरोमणि अकाली दल का महत्त्व केवल पंजाब तक सीमित नहीं था. इस के प्रभाव से देशविरोधी खालिस्तानी राजनीति उभर नहीं पा रही थी. सिख समुदाय को यह लगता था कि शिरोमणि अकाली दल उन की अगुआई करती है. इस के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल का सिख समुदाय पर प्रभाव था. सिख समुदाय भी खुद को उन से जोड़ कर देखता था. जब भी अलगाववादी खालिस्तान की बात करते थे तो सिख सोचते थे कि पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की अगुआई में उन की अपनी सरकार है.
कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी की सरकार होने से सिखों को अपनेपन का एहसास नहीं होता था. ऐसे में जब भाजपा 'हिंदूराष्ट्र' की बात करती है तो सहज भाव से सिखों को अपना खालिस्तान याद आने लगता है. प्रकाश सिंह बादल हिंदू और सिखों के बीच एक कड़ी का काम करते थे. शिरोमणि अकाली दल में बिखराव का प्रभाव केवल पंजाब की ही राजनीति पर नहीं, देश की राजनीति पर पड़ने वाला है.
प्रकाश सिंह बादल ने 1947 में अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था. उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1957 में जीता था. 1969 में वे दोबारा विधानसभा चुनाव में जीत गए. 1969-1970 तक सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशुपालन, डेरी आदि से संबंधित मंत्रालयों में कार्यकारी मंत्री के रूप में कार्य किया. वे 1970-71, 1977-80, 1997-2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. 1972, 1980 और 2002 में नेता विपक्ष भी रहे थे. मोरारजी देसाई के शासन काल में केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए और सांसद बने. इस के बाद केंद्रीय मंत्री के तौर पर उन्होंने कृषि और सिंचाई मंत्रालय का कामकाज देखा.
प्रकाश सिंह बादल सिख धर्म पर आधारित राजनीतिक दल शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष भी थे. उन के इसी प्रभाव के कारण खालिस्तान के नाम पर अलगाववादी ताकतें प्रभावी नहीं हो पाई थीं. उन के बाद उन के बेटे सुखबीर सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल की कमान संभाली. उन का प्रभाव बन नहीं पाया. इस का सब से बड़ा कारण प्रकाश सिंह बादल का भारतीय जनता पार्टी का साथ देना भी रहा.
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