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शंखनाद व शंखजल पवित्र क्यों ?
मन से, कर्म से जितना छल छोड़ते हो उतनी तुम्हारे भीतर प्रसन्नता, सुयोग्यता बढ़ती जाती है।
महाशिवरात्रि (१ मार्च) हेतु जोधपुर से पूज्य बापूजी द्वारा भेजा गया संदेश
भक्त तो वह है जो संसार में, माया में रहते हुए माया के लेप से पार रहे।
भगवान श्रीराम का आदर्श चरित्र
चैत्र शुक्ल नवमी को अभिजित मुहूर्त में दोपहर के ठीक १२ बजे राम-अवतार हुआ है। जो अजन्मा, अविनाशी, परात्पर ब्रह्म है वही साकार होकर नर-लीला करता है और नर को अपनी आत्मिक विभूति पाने की प्रेरणा करता है ।
बहादुर माँ का वह बहादुर बच्चा !
कभी-कभी सम्पत्ति की जगह विपत्ति मिले तो समझ लें कि आध्यात्मिक सम्पदा आनेवाली है।
अपने साथ दुर्व्यवहार मत करो
अपने दोष को तुरंत ढकने की जो वृत्ति है वह आत्मघाती वृत्ति है ।
अंतर्यामी झूलेलाल तो सबके अंदर प्रकट हो सकते हैं
अहंकार का त्याग करनेवाला सबका प्यारा हो जाता है।
सम्पूर्ण संत-समाज व हिन्दू संगठनों से विनती...
संस्कृति की रक्षा में भारत के सभी हितैषियों को एकजुट होना पड़ेगा।
सद्गुरु-वचनों में निष्ठा कितना ऊँचा बनाती है !
चौरासी के चक्कर से बचना हो तो ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु के चक्कर में आना सौभाग्य की बात है।
शारीरिक-मानसिक आरोग्य हेतु संजीवनी बूटी : पैदल भ्रमण
वासनापूर्ति की बेवकूफी में ही दुःख है।
महाशिवरात्रि-व्रत की महिमा निराली
असली 'मैं' को खोजते-खोजते नकली 'मैं' विलय होता है तो आत्मज्ञान हो जाता है।
देवत्वहीन होने के लिए नहीं, देवत्व जगाने के लिए होती है उपासना
विद्यार्थी संस्कार
जीवन में धर्म, सुख-समृद्धि और परमानंद लाना है तो 'ऋषि प्रसाद' के अभ्यासी बन जाइये
विकारी लोगों का संग छोड़ते जायें और सत्संगियों का, सत्शास्त्रों का संग बढ़ाते जायें तो जल्दी कल्याण होगा।
...तो जीवनदाता तुम्हारा आत्मा प्रकट हो जायेगा
सत्संग में हमारे विवेक का दीया जलता है लेकिन हम रक्षा नहीं करते इसलिए बुझ जाता है।
'ऋषि प्रसाद' व सत्साहित्य से बदला नारकीय जीवन
गुरुमंत्र की चिनगारी लेकर उसको फूंकते जाओ तो चाहे कितनी भी वासनारूपी घास हो, जल जायेगी।
भक्तों के भाव स्वीकारते गुरुवर पग-पग पर सहाय करते बन रहबर
भगवान को तुम क्या देते हो इसका महत्त्व नहीं है बल्कि किस भाव से देते हो इसका बड़ा महत्त्व है।
सूर्यदेव ने कार्तिकजी का पूजन रोककर पहले किनको पूजा ?
तुम आत्मदेव में जग जाओ तो वह दिन दूर नहीं कि देवी-देवता तुम्हें रिझाना शुरू कर दें।
शरीर को स्वच्छ व पुष्ट करनेवाला गेहूँ का चोकर
अनुकूलता का सदुपयोग किया तो प्रतिकूलता का असर नहीं होगा।
ईश्वरीय अंश विकसित कर यहीं ईश्वरतुल्य हो जाओ
भोगों से विरक्ति हो रही है तो समझो जगने की तरफ (ईश्वर की ओर) चल रहे हैं।
कसाब के लिए मानवाधिकार है और संत के लिए नहीं ?
जो सच्चे संतों की निंदा करता है, उनको सताता है, वह अपने भाग्य को ठुकराता है, आत्मघात करता है।
परिक्रमा क्यों ?
सत्संग से समत्व योग की कला सुनकर थोड़ा मनन करके अपने व्यवहार में लायें तो व्यवहार भी बंदगी हो जायेगा।
दृढव्रती हो जाओ
अपने वास्तविक स्वरूप में टिकने की दृढ़ता आ जाय तो शांति तो हमारा स्वभाव है।
ऐसा निःस्वार्थ सेवाभाव महान बना देता है
जो चिंता की खाई में नहीं गिरता है उसके हृदय में आनंद का झरना फूट निकलता है।
आशारामजी बापू जेल में नहीं हैं, हमारी संस्कृति की रक्षा-प्रणाली जेल में है : श्री धनंजय देसाई
अधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि ।
'सबकी तृप्ति में अपनी तृप्ति' दीपोत्सव मनाने की गुरुप्यारों की अनोखी है युक्ति
तुम्हारे जीवन में जो भी श्रेय है, जो भी अच्छा है वह बाँटने के लिए है।
मैं जिंदा हूँ तो केवल पूज्य बापूजी की वजह से !
सन् २००१ की बात है। मेरा प्लाइवुड का धंधा अच्छा चल रहा था लेकिन ज्यादा मुनाफे के लालच में मैं 'फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर' का काम करने लगा । उसमें मुझे बहुत घाटा सहना पड़ा और मेरे ऊपर डेढ़-दो करोड़ रुपये का कर्जा हो गया । पैसे समय पर न लौटाने के कारण मेरे ऊपर २२ केस हो गये । कई जगहों पर तो कोर्ट ने अरेस्ट वारंट तक निकाल दिये थे । जेल जाने की नौबत आ गयी थी। आखिर कोई रास्ता न निकलता देख परेशान होकर मैंने आत्महत्या करने का र निर्णय ले लिया।
...तो समझ लेना चाहिए कि मोह प्रबल है
मोह (अज्ञान) सारी व्याधियों का मूल है, इससे भव का शूल उत्पन्न होता है।
तुलसी के एक पत्ते पर बिक गये भगवान
जहाँ अपनापन होता है वहाँ प्रीति होती है अतः भगवान को अपना मानो।
भक्तों की सुनते पुकार, सर्वांतर्यामी हैं मेरे करतार !
'पूज्य बापूजी के प्रेरक जीवन-प्रसंग' गतांक से आगे
बापूजी के साथ अन्याय हो रहा है, उनकी जल्द-से-जल्द रिहाई होनी चाहिए
अगर समाज में भाईचारा लाना है तो ब्रह्मवेत्ता संतों के ही प्रभाव-प्रसाद की जरूरत है।
समता और लगन का महत्त्व
समता ऊँचा ब्रह्मास्त्र है। दूसरे कोर्स के बजाय समताप्राप्ति का कोर्स करो, यह सर्वश्रेष्ठ कोर्स है।