हकीकत भी बनें उपज की कीमत बढ़ाने के चुनावी वादे
Modern Kheti - Hindi|December 15, 2023
एनडीए सरकार ने प्रांतों की सरकारों को निर्देश दिया था कि वे गेहूं और धान की खरीद के एमएसपी पर कोई बोनस न दें, यह कहते हुए कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो केंद्र खरीद समर्थन वापस ले लेगा- तो क्या उच्चतर कीमत को खरीद कीमतों पर पर बोनस के रूप में नहीं देखा जाएगा?
देविंदर शर्मा
हकीकत भी बनें उपज की कीमत बढ़ाने के चुनावी वादे
  • क्यों किसान तनाव में जी रहे हैं, और उन्हें संकट की स्थिति से निकालने के लिए क्या किये जाने की जरूरत है? यह मानते हुए कि जब देश में किसानों की औसत मासिक आय (कृषक परिवारों के ताजा सिचुएशनल एसेसमेंट सर्वे के मुताबिक) बमुश्किल 10, 218 रुपये बैठती है, तो कृषि आमदन में वृद्धि करने की तुरंत जरूरत है।

विश्व में सबसे पुराने नीलामी घरों में से एक है न्यूयार्क स्थित ऑक्शन हाउस सोदबी 'ज, जिसे अब पेंटिंग, कलाकृतियों व प्रतिष्ठापूर्ण आभूषणों के बजाये कृषि पदार्थों के मूल्यों की ओर रुख करने पर विचार करना चाहिये। अपने पोर्टफोलियो का विस्तार करते हुए सोदबीज कृषि पदार्थों की कीमतों पर भी नीलामी शुरू करने की सोच सकता है। 

यदि नीलामी घर कृषि उपज की ज्यादा ऊंची कीमतें प्राप्त करने का उद्यम शुरू करता है, वह भी ऐसे वक्त जब भारत में लोकतंत्र का उत्सव यानी चुनाव प्रक्रिया जारी हो तो वैश्विक स्तर पर सोदबी ज एक लोकप्रिय नाम के तौर पर उभरकर सामने आयेगा। केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में किसान उस नीलामी पर पैनी नजर रखेगा।

दरअसल, बीते दिनों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्रों में किसानों के लिए किये वादों में अंतर मालूम करना मुश्किल हो रहा था, तो शायद सोदबी 'ज़ किसानों को बेहतरीन कीमतें प्रदान करके कुछ और अच्छा कर सकती थी। 

ज्यादा महत्वपूर्ण यह कि ऐसी किसी नीलामी के बाद जो अंतिम कीमत सामने आती है किसान को उस पर और ज्यादा यकीन होगा, इस उम्मीद के चलते कि नीलामी में भागीदारी कर रहे राजनीतिक दल अपने किये वादे से पीछे नहीं हटेंगे। चुनावी राज्य मध्यप्रदेश में सबसे पहले जारी किये गये कांग्रेस घोषणा पत्र में गेहूं और धान के लिए ज्यादा ऊंची कीमतें प्रदान करने का वादा था।

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