बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
Modern Kheti - Hindi|15th November 2024
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से

एक या दो दिन बाद, नई दिल्ली में कुछ जाने-माने अर्थशास्त्रियों के साथ बंद कमरे में बैठक हुई। चूंकि बतौर निर्वाचित प्रधानमंत्री वे इसमें शामिल नहीं हो सकते थे, लिहाजा एक अन्य राजनीतिक दिग्गज मुरली मनोहर जोशी ने बैठक की अध्यक्षता की।

अर्थशास्त्रियों को अपने सुझाव इस बाबत देने को कहा गया कि एनडीए सरकार को किस किस्म की आर्थिक नीतियां लानी चाहिएं ताकि उसे आगे चलकर सत्ता विरोधी लहर का सामना न करना पड़े। उपस्थित अधिकांश अर्थशास्त्री चाहते थे कि राजकोषीय घाटे पर कड़ी नजर रखी जाए और चालू खाता घाटा कम करने के तरीके खोजे जाएं। चिन्हित मुद्दों पर काफी विचार हुआ और निश्चित रुप से अन्य अहम विषयों पर भी चर्चा हुई। मसलन, रोजगार सृजन, विनिर्माण एवं निर्यात को बढ़ावा देना इत्यादि।

जब मुझसे यह सुझाव देने के लिए कहा गया कि नीतिगत ध्यान का केंद्र किस पर होना चाहिए, तो मेरा जवाब था कि बजट का 60 प्रतिशत हिस्सा उस समय कृषि क्षेत्र में काम कर रही 60 प्रतिशत आबादी के लिए रखा जाना चाहिए। मेरे कई साथी मुझसे सहमत नहीं थे, कुछ ने तो यहां तक चेतावनी दे डाली कि अगर बजट का 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि के लिए आवंटित किया गया तो आर्थिक तबाही मच जाएगी। उद्योग और बुनियादी ढांचा देविंदर शमा विकसित करने को अधिक धन देने पर जोर दिया गया और इसे उच्च आर्थिक विकास की ओर ले जाने का शर्तिया माध्यम बताया गया।

मैंने फिर भी जोर देकर कहा कि यह एक नया सांचा और आर्थिक सोच बनाने का समय है और जब तक कृषि के लिए पर्याप्त बजटीय प्रावधान नहीं किया जाता, तब तक देश सर्वांगीण विकास नहीं कर पाएगा। मुझे पता था कि मेरा सुझाव मुख्यधारा की आर्थिक सोच से मेल नहीं खाएगा। हालांकि, मेरी समझ से सत्ता विरोधी लहर से बचने की एकमात्र राह खेती और ग्रामीण विकास में पर्याप्त निवेश करना था। बैठक का समापन जोशी ने यह कहकर किया कि वे हमारे विचारों से प्रधानमंत्री को अवगत करवाएंगे।

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