निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
Modern Kheti - Hindi|15th November 2024
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
ज्ञानेन्द्र रावत
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल

सरकारें इस बाबत तब होश में आती हैं जब इस समस्या के चलते वायु प्रदूषण में बेतहाशा बढ़ोतरी से लोगों का सांस लेना भी दूभर हो जाता है। पराली जलाने की घटनाओं में हुई कई गुणा बढ़ोतरी हालात की विकरालता का जीता-जागता सबूत है। धान की कटाई के रफ्तार पकड़ने के साथ ही पराली जलाने की घटनाओं में दिनों-दिन होती बढ़ोतरी को खतरा माना जाना चाहिए।

पराली जलाने से हर साल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, उत्तर प्रदेश का पश्चिमी अंचल, हरियाणा, पंजाब और किसी हद तक राजस्थान का सीमांत क्षेत्र सितम्बर से दिसम्बर के आखिर तक भयावह स्तर तक प्रभावित रहता है। ये महीने इन क्षेत्र के लोगों के लिए मुसीबत बनकर आते हैं। इन राज्यों की सरकारों द्वारा इसे रोकने की दिशा में किए गये सारे प्रयास, अभियान और किसानों को जागरुक करने के सभी कदम बेमानी साबित हो जाते हैं।

Diese Geschichte stammt aus der 15th November 2024-Ausgabe von Modern Kheti - Hindi.

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