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सैली का चश्मा
Champak - Hindi|November First 2023
सैली गिलहरी बहुत सारे "पेड़पौधों वाले एक खूबसूरत और बड़े पार्क में घने अशोक के पेड़ पर रहती थी. पंक्तियों में फूल अपनी साफसुथरी पट्टी यानी बिस्तर पर अनुशासित छात्रों की तरह खड़े दिखाई दे रहे थे. चारों ओर हरियाली थी. सैली को अशोक की लंबी पत्तियां और उस का मोटा तना काफी पसंद था, जिस पर वह रहती थी. वह अपनी पूंछ घुमाती हुई पेड़ के तने पर ऊपरनीचे दौड़ लगाती रहती.
- सुमन बाजपेयी
सैली का चश्मा

सब से खुशी की बात यह थी कि पार्क में सुबहशाम बहुत से लोग टहलने आते थे. यह एक जीवंत और खुशियों से भरी आनंदित करने वाली जगह थी. प्यारेप्यारे छोटे बच्चे अपनी मम्मीपापा और दादादादी के साथ वहां आते थे.

बच्चे अकसर समूह में आते और खेलते थे. उन की खुशियों भरे शोरगुल से सैली को कोई फर्क नहीं पड़ता था. वास्तव में सैली को वे बच्चे पसंद थे, जो अपनी शरारतों से पार्क को जीवंत बनाते थे.

दोपहर में जब पार्क में कोई नहीं जाता था, तो वहां शांति रहती थी. सैली तब लंबी नींद सोती थी. सर्दियों में दोपहर को भी पार्क में खूब हलचल रहती थी. लोग घास पर चादरें बिछाते और मूंगफली, संतरे तथा अन्य चीजें खाया करते.

कुछ लोग तो अपना लंच भी पार्क में ही करते थे. सैली को भी वहां खाने के लिए मूंगफली, चने और रोटी के टुकड़े मिल जाते थे.

सैली कुछ कुछ भी नहीं समझ पाती थी, लेकिन वहां जो भी घटता था, उसे देखना वह पसंद करती थी.

कुछ लोग तेज चलते तो कुछ दौड़ते थे. बूढ़े व्यक्ति चारों ओर धीरेधीरे टहलते थे. युवा चलते समय कानों पर इयरफोन लगाए संगीत के मजे लेते थे. बच्चे झूलों पर झूलते और इधरउधर दौड़ते या बौल खेलते. कुछ लोग घास पर पैर मोड़ कर, आंखें बंद कर आराम से बैठ जाते थे.

कभीकभी कुछ लोग जो पार्क में आते थे, उस पेड़ के चारों ओर जो चबूतरा था, उस पर बिस्किट के टुकड़े या अनाज के दाने रख जाते थे.

Diese Geschichte stammt aus der November First 2023-Ausgabe von Champak - Hindi.

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