जंबो हाथी भीड़ में अलग दिख रहा था. उस ने अपनी सूंड़ में एक बड़ा सा झंडा थाम रखा था, जो दूसरों से ऊपर था. उस के पीछे बच्चों का एक समूह उत्साहपूर्वक बड़े जोश से देशभक्ति के नारे लगा रहा था. अभी स्कूल के कार्यक्रम चल ही रहे थे, अचानक खबर फैल गई कि गांधीजी लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर आ गए हैं और वे बेगम हजरत महल पार्क में एक सभा को संबोधित करेंगे.
जंबो ने जंपी बंदर से कहा, "यह कैसे संभव है? 30 जनवरी, 1948 को तो उन की मृत्यु हो गई."
"जंबो, तुम मानो या मानो गांधीजी आ रहे हैं और मैं उन्हें देखनेसुनने का अवसर नहीं गंवाना चाहता," जंपी ने जवाब दिया.
यह सुन कर सभी बच्चे गांधीजी को देखने चल पड़े तो जंबो चिल्लाया, "रुको, दोस्तो, मैं भी आ रहा हूं."
जंबो की आवाज सुनते ही सब हंस पड़े, क्योंकि सब से ज्यादा नानुकुर वही कर रहा था.
गांधीजी ने टैक्सी लेने से इनकार कर दिया और ऐसी गति से चले, जिस की कोई बराबरी नहीं कर सकता था. कुछ लोग उन के साथ चलने के लिए दौड़ रहे थे तो कोई भाग रहा था.
गांधीजी गोल ऐनक, हाथ मे लाठी और जूतों की जगह लकड़ी के सैंडिल पहनते थे. उन्होंने शरीर पर एक चादर लपेट रखी थी और लंगोटी बांध रखी थी.
तभी जिफी जिराफ ने नारा लगाया, "महात्मा गांधी अमर रहें."
गांधीजी उन के भोलेपन पर मुसकराए.
प्रिंसिपल शेरसिंह ने जिफी को समझाया, "जिफी, 'अमर रहे' का नारा मरे लोगों के लिए लगाया जाता है. जिंदा लोगों के लिए 'जिंदाबाद' का नारा लगाया जाता है.
जिफी ने फिर नारा लगाया, "औल हेल गांधीजी."
जीतू चीता लखनऊ का पुलिस कमिश्नर था, वह सुरक्षा बंदोबस्त में व्यस्त था. हरेक की गांधीजी को देखने की इच्छा थी. यहां तक कि नेताओं की भी गांधीजी को देखने की अभिलाषा थी और वे उन के पीछेपीछे चलने लगे.
गांधीजी विधान सभा मार्ग से हजरतगंज की तरफ मुड़े और सीधे परिवर्तन चौक पहुंच गए. इस के पास ही बेगम हरजत महल पार्क था. हालांकि अब यहां बैठकें नहीं होती थीं, लेकिन गांधीजी ने यहां, एक बैठक आयोजित करने पर जोर दिया. इस स्थान को 'लखनऊ का दिल' कहा जाता है. लखनऊ प्रशासन ने आननफानन में उन के लिए एक मंच तैयार किया.
Diese Geschichte stammt aus der August Second 2024-Ausgabe von Champak - Hindi.
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