दिल्ली की राधिक कक्कड़ ने अपने भविष्य की पूरी योजना बना ली है। 42 साल की राधिका एक कंपनी के एचआर विभाग में कार्यरत हैं और पिछले सात साल से एक नियमित रकम सेविंग स्कीम में जमा कर रही हैं। लेकिन राधिका जैसी कितनी महिलाएं हैं, जो अपने भविष्य के बारे में सोचती हैं। अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता बच्चों के भविष्य को सुरक्षित और स्वस्थ रखने के लिए कई तरह की योजनाएं बनाते हैं, लेकिन अपने लिए कुछ खास नहीं सोचते। भारतीय पैरेंट्स को लगता है कि उनके बच्चे भविष्य में उनकी जिम्मेदारी ले ही लेंगे, ऐसे में उन्हें अपने बारे में सोचने की क्या जरूरत है। इसलिए वे अपनी जमा पूंजी बच्चों पर खर्च कर देते हैं और अपने लिए कोई आर्थिक या स्वास्थ्य संबंधी योजना नहीं बनाते।
49 साल की गौरी प्रधान ऐसी ही कामकाजी महिला हैं। प्राइवेट जॉब करने वाली गौरी ने अपने भविष्य को सुरक्षित और स्वस्थ रखने के बारे में कभी सोचा ही नहीं। एक हालिया सर्वे बताता है कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के एक तिहाई से भी कम लोगों के पास भविष्य में अपनी देखभाल के लिए कोई स्पष्ट योजना है।
फाइनेंस एक्सपर्ट्स बताते हैं कि रिटायरमेंट यानी 60 साल की उम्र के बाद की योजना एक लॉन्ग टर्म प्लानिंग है, जो 30 साल की उम्र से ही शुरू कर देनी चाहिए, वरना देर हो जाती है। 60 साल इंसान के लिए एक माइलस्टोन है, जिसके बाद वह सुकून से जिंदगी बसर करना चाहता है। इसलिए अपने प्रति खुद अपनी जिम्मेदारी समझें और सेविंग्स स्कीम में निवेश करने की योजना बना लें, जिससे आपकी नियमित जरूरतें पूरी होती रहें और मासिक आय भी होती रहे। सरकार और बैंकों की ऐसी कई सेविंग्स और डिपॉजिट स्कीम हैं।
Diese Geschichte stammt aus der November 24, 2023-Ausgabe von Rupayan.
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शाप भी देते हैं पितर
धर्मशास्त्रों ने श्राद्ध न करने से जिस भीषण कष्ट का वर्णन किया है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसीलिए शास्त्रों में पितृपक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने को कहा गया है।
हर तिथि का अलग श्राद्धफल
पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है।
पितृदोष में पीपल की परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में पितृदोष दूर करने के उपाय जरूर करने चाहिए, ताकि पितर प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
पिंडदान के अलग-अलग विधान
व्यक्ति का अंत समय कैसा रहा, इस आधार पर उसकी श्राद्ध विधि भी विशेष हो जाती है। अलग-अलग मृत्यु स्थितियों के लिए अलग-अलग तरह से पिंडदान का विधान है।
पितृपक्ष में दान
भारतीय संस्कृति में दान की महत्ता अपरंपार है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान दान का विशेष महत्व है। कुछ वस्तुओं के दान को तो महादान माना गया है।
जैसी श्रद्धा, वैसा भोज
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज जरूरी है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अत्यंत गरीब है तो वह जल में काले तिल डालकर ही पूर्वजों का तर्पण कर सकता है।
स्त्रियों को भी है अधिकार
यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी संकल्प लेकर श्राद्ध कर सकती है। शास्त्रों ने इसके लिए कुछ नियम बताए हैं।
निस्संतान के श्राद्ध की विधि
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी ? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।
पंडित न हों तो कैसे करें पिंडदान
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकते हैं।
किस दिशा से पितरों का आगमन
पितरों के तर्पण में कुछ वास्तु नियम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके पालन से तर्पण का अधिकतम लाभ होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।