आज से करीब दस साल पहले हिंदी सिनेमा में एक फिल्म आई थी - 'शादी के साइड इफेक्ट्स'। इसका एक डायलॉग आज के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सही जान पड़ता है - "आज बच्चे संस्कार बाई और ड्राइवर से सीख रहे हैं।" दरअसल, फिल्म में विद्या बालन को अपनी छोटी-सी बच्ची के लिए नैनी की जरूरत थी और इला अरुण (जो नैनी के किरदार में थीं) से बात हो रही थी। जब बात पेमेंट पर आई तो उनकी हाई-फाई सैलरी जानकर विद्या ऊहापोह में पड़ गईं। तब इला अरुण पूरे आत्मविश्वास से उन्हें जवाब देती हैं कि "पहले बच्चे संस्कार घर में दादा-दादी और नाना-नानी से सीखते थे, लेकिन आज यह काम उन लोगों पर आ गया है। अगर कोई गलत नैनी आ गई तो बच्चे चोरी करने और गाली देने के साथ ही गलत आदतें भी सीख जाते हैं।"
उनकी यह बात काफी हद तक सही भी है। आज जब महिलाएं घर से बाहर कदम रख रही हैं, देर शाम घर लौट रही हैं तो ऐसी स्थिति में बच्चों की परवरिश उनकी देखभाल के लिए रखी गई बाई या अंग्रेजी भाषा में कहें तो नैनी पर आ गई है। देखा जाए तो हमारे देश में नैनी की परंपरा काफी पुरानी रही है। पहले इन्हें 'धाय मां' कहकर पुकारा जाता था। राणा सांगा की पन्ना धाय मां तो अपनी कर्तव्य परायणता और त्याग के कारण इतिहास में अमर हो गईं। आज यही धाय मां मॉडर्न 'नैनी' का अवतार ले चुकी है। आम परिवारों में भी नैनी रखने का प्रचलन बढ़ चला है, जिसका एक बड़ा कारण संयुक्त परिवार के ढांचे का बदलकर एकल परिवार हो जाना है। साथ ही महिलाएं भी काम पर जा रही हैं, ऐसे में बच्चों की देखभाल, उन्हें स्कूल से लाने ले जाने जैसे काम नैनी के जिम्मे होते जा रहे हैं। इन हालात में यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि आप किसी भरोसेमंद और सही महिला को ही अपने बच्चे की देखभाल के लिए नियुक्त करें तो अच्छा है, क्योंकि आधुनिक होते इस जमाने में अपराध भी आधुनिक होते जा रहे हैं। ऐसे में आपके जिगर के टुकड़े की जिम्मेदारी किसी दूसरे को सौंपना यकीनन आम बात नहीं है। आप बच्चे से दूर रहकर अपने काम पर भी तभी ध्यान दे पाएंगी, जब बच्चे की देखभाल कर रही नैनी से पूरी तरह संतुष्ट होंगी। इसलिए चाहें किसी भी माध्यम से आप नैनी रखने वाली हों, कुछ बातों का ध्यान तो रखना ही होगा।
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Diese Geschichte stammt aus der November 08, 2024-Ausgabe von Rupayan.
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