बिहार की राजधानी पटना की एक पॉश कॉलोनी पाटलीपुत्रा में उनका बड़ा सा बंगला है. घुसते ही सबसे पहले बने ब्रिटिश शैली के ड्रॉइंग रूम में वे एक सोफे पर बैठे नजर आते हैं. उन्होंने हल्के गुलाबी रंग की शर्ट पहन रखी है और सफेद रंग फुलपैंट, सफेद स्पोर्ट्स शूज और सुनहरे रंग की घड़ी व ब्रेसलेट. वे मतलब आनंद मोहन, बेफिक्री के साथ यहां बैठे आनंद मोहन की इस बीच कई पुराने संगीसाथियों, जिनमें से ज्यादातर राजनीति से जुड़े हैं, मुलाकात हुई है. अपने ऊपर लगे आरोप और उसमें मिली सजा के बारे में वे कहते हैं, "हमें सजा भले हो गई हो, मगर दुनिया जानती है, हम निर्दोष हैं. इस घटना ने दो परिवारों का जीवन बर्बाद कर दिया. एक मेरा, लवली आनंद के परिवार का, दूसरा कृष्णैया के परिवार का."
पिछली सदी के आखिरी दशक में जब राजनीति का अपराधीकरण अपने चरमोत्कर्ष पर था, तब यही आनंद मोहन अपने चिर प्रतिद्वंद्वी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के साथ इसके पोस्टर बॉय हुआ करते थे. मंडल आयोग लागू होने के बाद बिहार के समाज में जो जातिगत उथल-पुथल मची, उसमें ये दोनों क्रमशः अगड़ी और पिछड़ी जाति के कथित संरक्षक और मसीहा बनकर उभरे थे. तब बिहार के कोसी अंचल का इलाका इन दोनों बाहुबलियों और इनके साथियों की खूनी भिड़ंत की वजह से थर्राया रहता था. मगर जल्द ही दोनों ने सपरिवार अपराध से खुद को राजनीति की तरफ शिफ्ट कर लिया. दोनों के परिवार के लोग बिहार की विधानसभा और देश की लोकसभा में अपने-अपने इलाके के लोगों की नुमाइंदगी करने लगे और फिर कुछ गंभीर मुकदमों ने दोनों को लंबे अरसे के लिए जेल में रहने को मजबूर कर दिया. इनमें से पप्पू यादव काफी पहले रिहा हो गए थे, अब बिहार सरकार के विधि विभाग ने अपने जेल मैनुअल में असाधारण संशोधन करते हुए 24 अप्रैल को आनंद मोहन की रिहाई की भी घोषणा कर दी है.
Diese Geschichte stammt aus der May 10, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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