दरअसल, तीन तीर्थयात्रियों को लेकर वह सेडान कार राष्ट्रीय राजमार्ग 106 से होते हुए ज्यों ही राजधानी ढाका से 250 किमी दूर चटगांव की ग्रामीण बस्ती मेखल में पुंडरीक धाम के दरवाजे पर पहुंची, यात्री श्रद्धा से अभिभूत हो गए. 16वीं सदी के महान संत श्री चैतन्य महाप्रभु के समकालीन वैष्णव ऋषि पुंडरीक विद्यानिधि का जन्मस्थल माना जाने वाला 21 एकड़ का यह हरा-भरा परिसर शांत और नीरव रमणीक स्थल है, जहां फूलदार पौधे और प्रचुर जलाशय मौजूद हैं. 1921 में निर्मित इस मंदिर का प्रबंधन 1982 में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) ने अपने हाथों में लिया. आज यह बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय का पसंदीदा तीर्थस्थल है. इसी दिव्यता में हिस्सा लेने के लिए उस दिन वे तीन तीर्थयात्री आए थे. मगर हुआ यह कि उस शांत - नीरव माहौल को मंदिर के बाहर पड़ाव डाले और भारी-भरकम हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मियों ने भंग कर दिया, जो दनदनाते हुए सुरक्षा जांच के लिए आ धमके. उन तीनों को हाथ के इशारे से फटाफट जाने दिया गया, मगर तनाव की अंतर्धारा महसूस की जा सकती थी.
हाल के हफ्तों में यह आध्यात्मिक स्थल सांसारिक कलह का नाभिकेंद्र बन गया, जिसने भारत और नोबेल पुरस्कार विजेता तथा अंतरिम सरकार के प्रधान सलाहकार मोहम्मद यूनुस की अगुआई वाले बांग्लादेश के नए सियासी निजाम के बीच रिश्तों में तनाव घोल दिया. इस तूफान के केंद्र में चिन्मय कृष्ण दास हैं, जो मंदिर के मुखिया और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचारों के मुखर आलोचक हैं. राजद्रोह के आरोप में 25 नवंबर को गिरफ्तार दास की हिरासत से हिंसक घटनाओं का तांता लग गया, जिससे बांग्लादेश के हिंदू डर के साये में रहने को मजबूर हो गए. नतीजे बेहद त्वरित और गंभीर रहे.
Diese Geschichte stammt aus der December 25, 2025-Ausgabe von India Today Hindi.
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