इसकी एक बड़ी वजह वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में जीडीपी का 6.1 फीसद बढ़ना रही, जो 5 फीसद की उम्मीद से काफी ज्यादा है. मगर अब भी चिंता इसको लेकर है कि यह वृद्धि कितनी टिकने वाली है खासकर जब बीते साल की वृद्धि में काफी योगदान महामारी के वर्षों की दबी हुई मांग का रहा हो. वित्त वर्ष 2022-23 की वृद्धि 2021-22 की 9.1 फीसद की वृद्धि से कम है. वैसे वित्त वर्ष 2020-21 में वृद्धि के शून्य से नीचे ( - 6.6 फीसद) जाने के बाद आया था, सो वह आंकड़ा भी बढ़ा ही हुआ था.
बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस कहते हैं, "7.2 फीसद की वृद्धि में खुश होने की कोई वजह नहीं है... हम (अब भी) उस 8 फीसद के दायरे में नहीं हैं जो हमने पिछले दशक के शुरुआती वर्षों में हासिल किया था." बीते एक साल से भी ज्यादा वक्त से यूक्रेन युद्ध से डगमगाकर सुस्त पड़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की संभावनाएं चर्चा का विषय रही हैं. पर सबनवीस को लगता है कि बाकी दुनिया के साथ भारत की तुलना करना शायद मुनासिब न हो क्योंकि "कुछ छोटे देश हमसे बेहतर (प्रदर्शन) कर रहे हैं. वे कहते हैं, "सवाल यह है कि क्या हम ज्यादा नौकरियां और ज्यादा आमदनी पैदा कर रहे हैं या ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकाल रहे हैं?" वे कहते हैं कि 2018-19 और 2022-23 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर महज 2.7 फीसद रही है.
Diese Geschichte stammt aus der June 21, 2023-Ausgabe von India Today Hindi.
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